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क्षयं नीत्वाथ लोकान्तं यावत्प्रयाति तत्क्षणे । ऊर्ध्वगतिस्वभावत्वाद्धर्मद्रव्य सहायतः ॥७६६॥
अन्त में एक वेदनीय, प्रदेय, सपना, बादरपना, मनुध्याय, यश, सद्यश, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, सुभग, उच्चगोत्रता, पञ्चेन्द्रिय तथा तीर्थकृत । इस प्रकार १३ प्रकृतियों का क्षयकर उसी क्षण लोकान्त को चला जाता है, क्योंकि जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन है और उसके लोकान्त तक गमन में धर्मद्रव्य सहायक है ।
इत्येवंलब्ध सिद्धत्व पर्यायाः परमेष्ठिनः । मुक्तिकान्ताघनाश्लेषसुखास्वादन लालसाः ॥७७०॥
इस प्रकार मुक्तिरुपी स्त्री से घने प्रालिंगन रुपी सुख के आस्वादन की लालसा वाले परमेष्ठी सिद्धपर्याय को प्राप्त होते हैं ।
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affetal मूषाया श्राकारेणोपलक्षिताः । foचित्पूर्वांगतो न्यूनाः सर्वांगेषुघनत्वतः ॥ ७७१ ॥
मोमरहित मूस के बीच के प्रकार से उपलक्षित वे समस्त अंगों में घनत्व के कारण अपने पूर्व शरीर से कुछ न्यून होते हैं ।
ऊर्ध्वभूता वसन्त्येते तनुवातान्तमस्तकाः । प्रभावाद्धर्मद्रव्यस्य परतो गतिवर्जिताः ॥७७२ ॥
तनुवातवलय के अन्तिम छोर पर ऊपर ये रहते हैं । प्रागे धर्मद्रव्य न होने से गति नहीं है ।
१ गति सिक्थकमूषाय. ख. ।