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सामायिक प्रतिमा मासं प्रत्यष्टमीमुख्यचतुष्पर्वदिनेष्वपि। चतुरभ्यवहार्याणां विदधाति विसर्जनम् ॥५३४॥ पूर्वापरदिने चैकाभुक्तिस्तदुत्तमं विदुः । मध्यमं तद्विना क्लिष्टं यत्राम्बु सेव्यतेक्वचित ॥५३॥ इत्येकमुपवाघ यो विदधाति स्वशक्तितः ।
श्रावकेषु भवेत्तुः प्रोषधोऽनशनव्रती ॥५३६॥ मास की प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को जो चार प्रकार के भोजन का त्याग करता है, इसके साथ पहले और बाद के दिन जो एक बार भोजन करता है, वह उत्तम प्रोषधोपवासी है। मध्यम वह है जो पहले और बाद के दिन एक बार भोजन का परित्याग न करता हुआ उपवास के दिन क्वचित् जल सेवन करता है । इस प्रकार जो अपनो शक्तिपूर्वक एक उपवास करता है, वह चौथा प्रोषधोपवासव्रती होता है।
प्रोषध प्रतिमा ।
फलमूलाम्बुपन्नाद्य नाश्नात्यप्रासुकं सदा।
सचित्तविरतो गेही' दयामूर्तिर्भवत्यसौ ॥५३७॥
जो अप्रासुक फल, मूल, जलपत्र आदि सदा नहीं खाता है, वह दयामूर्ति गृहस्थ सचित्तविरत होता है।
सचित्त प्रतिमा ।
१ योगी।