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मिला है वे पूज्य उपाध्याय भरतसागर जी महाराज एवं माता स्याद्वदिमतीजी हैं । उनके लिए मेरा क्रमशः नमोऽस्तु एवं वदामि अर्पण है ।
उम विद्वानों का प्रभारी हूँ जिन्होंने ग्रथों के प्रकाशन में अनुवादक/ सम्पादक एवं संशोधक के रूप में सहयोग दिया है । ग्रन्थों के प्रकाशन में जिन दाताओं ने अर्थ का सहयोग करके अपनी चञ्चला लक्ष्मी का सदुपयोग करके पुण्यार्जन किया उनको धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। यह ग्रन्थ विभिन्न प्रेसों में प्रकाशित हुए एतदर्थ उन प्रेम संचालकों को जिन्होंने बड़ी तत्परता से प्रकाशन का कार्य किया । अन्त में उन सभी सहयोगियों का प्रभारी हूं जिन्होंने प्रत्यक्ष-परोक्ष में सहयोग प्रदान किया है ।
० पं० धर्मचन्द्र शास्त्री
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