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१०६ घण्टाद्य मंगलद्रव्यप्रंगलावाप्ति हेतवे ।
पुष्पाञ्जलिप्रदानेन पुष्पदन्ताभिदीप्तये ॥४६०॥ मङ्गल की प्राप्ति के लिए घष्टादि मंगल द्रव्यों से, पुष्पदन्ताभिदीप्ति के लिए पुष्पाञ्जलि प्रदान कर।
तिसृभिः शान्तिधाराभिः शान्त्ये सर्वकर्मणाम् ।
आराधयेज्जिनाधीशं मुक्तिश्रीवनितापतिम् ॥४६१॥ समस्त कर्मों की शान्ति के लिए तीन शान्ति धाराओं से मुक्तिलक्ष्मी रूपी स्त्री के पति जिनाधीश की आराधना करे ।
इत्येकादशधा पूजां ये कुर्वन्तिजिनेशिनाम् ।
अष्टौ कर्माणि सन्दह्यप्रयान्ति परमं पदम् ॥४६२॥ इस प्रकार जो जिनेन्द्र की ग्यारह प्रकार से पूजा करते हैं । वे आठ कर्मों का भली-भाँति दहनकर परमपद की ओर प्रयाण करते हैं।
अष्टोत्तरशतैः पुष्पैः जापं कुर्याज्जिनाग्रतः।
पूज्यः पंचनमस्कारैर्यथावकाशमज्जसा ॥४६३॥ जिनेन्द्र भगवान् के आगे यथावकाश उचित रीति से पूज्य पंचनमस्कार के १०८ बार पुष्पों से जाप करें।
अथवा सिद्धचकाख्यं यंत्रमुद्धार्य तत्वतः।। सत्पचपरमेष्ठयाख्यं गणभृद्वलयक्रमम् ॥४६४॥ यंत्रं चिन्तामणि म सम्यग्शास्त्रोपदेशतः।। संपूज्यात्र जपं कुर्यात् तत्तन्मंत्रैर्यथाक्रमम् ॥४६॥