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पर्यायेण दर्शितः कथित' इति व्यवहार देशितो व्यवहार नय: पुणे पुनः अधस्तनणिक सुवर्ग लामवस्त्रयोजनवान् भवति । . जे | पुरानाः दु पून: अपरमें अशुद्ध असमत सम्यग्दष्टया पेक्षया श्रावकापेक्षया वा सुराग सम्यादृष्टि लक्षणे शुभोपयोग प्रमत्ताप्रमत्त संयतापेक्षया च भंद रत्नत्रय लक्षणे वा ठिदा स्थिताः कस्मिन् स्थिता: ? भावे जीव पदार्थ तेरामिति भावार्थः ।
( श्री जयसेनचायं कृत तात्पर्य वृत्तिः ) — सुद्धोसुद्धादेसो ' शुद्ध निश्चय नय शुद्ध द्रव्य का कथन करने वाला है । गादयो परम भाव दरसीहि । वह वाद्धता को प्राप्त हुए आत्मशियों के द्वारा जानने भावने अर्थात् अनुभव करने योग्य है। क्यांकि बह सोलह वानी स्वर्ण के समान अभेद रत्नत्रय स्वरूप समाधि काल में प्रयोजनवान होता है। (वबहारदेसिदो कित व्यवहार अर्थात् विकल्प, भेद अथवा पर्याय के द्वारा कहा गया जो व्यवहार नय है वह (पुण ) पन्द्रह, चौद: वानी के स्वर्णलाभ के समान उन लोगों के लिये प्रयोजनवान् है । ( जे) जो लोग ( अपरमे हिटदा भावे ) अशुद्ध रूप शुभोपयोग मे, जो कि असंयत सम्यग्दृष्टि अथवा श्रावक की अपेक्षा तो सराग सम्बग्दृष्टि लक्षण वाला है और प्रमत्त अप्रमत्त संयत लोगों की अपेक्षा नंद रत्नत्रय लक्षण वाला है ऐसा शूभोपयोग रूप जीव पदार्थ में स्थित है।
अथ नय पक्षालिक्रांतस्य शुद्ध जीवस्म नि स्वरूपमिति पृष्टे सति पुनविशेषण कथयति ।
दोपहपि णयांण भणियं जाणइ गरि तु समयपडिबद्धो। ण दु णयं पर्वखं गिण्हदि किंचि विजयपत्र परिहीणो ।।१४३॥
समयसार
योसी नये पक्षपात रहितः स्वसंवेदन ज्ञानी तस्यातिप्रायेण बद्धाबद्ध मृदामूढादि नये विकल्प रहित चिदानंदैक स्वभाव । दोपह वि णयाण भणिय जाणई थी, भगवान् केवली निश्चय व्यवहाराभ्यां द्वाभ्यां भणित मर्थ द्रव्य पर्याय रूप 'जानति । गरि तु पडिबद्धो तथापि नवरि केवलं