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________________ व्यवहार नय ! उनमें से निश्चयनय की सिद्धि के लिये द्रव्याथिक और पर्यायाथिक ये दोनो नय कारण है ऐसा सर्वज्ञ देव ने कहा है । आध्यात्मिक दृष्टि से नय दो प्रकार है। १) निश्चय २) व्यवहार तत्र निश्चयनयोऽभेद विषयो, व्यवहारो भेद विषय ॥२१६॥ १) निश्चय नय – अभेद विषयो ज्ञेय: यस्य सः निश्चय नयः । २) व्यवहार नय - भेदेन ज्ञातुं योग्यः सो ब्यवहार नयः । निश्चय नय का विषय अमेद है । यबहार गाविस विशेष भेद स्वरुप है। जैसे :- गुण-गुणी पर्याय-पर्यायी, धर्म-धर्मी भेद नहीं करके अभेद रुप से जो नय ग्रहण करता है उसको निश्चय नय कहते हैं । जैसे:-आत्मा गुणी, ज्ञान, दर्शन, सुख वीर्यादि गुण हैं उन ज्ञान-दर्शनादि को अभेद करके केवल आत्मा ग्रहण करना निश्चय नय है। आत्मा में ज्ञान, दर्शनादि है इसी प्रकार भेद करके अथवा आत्मा ज्ञानवान, दर्शनवान ग्रहण करना व्यवहार नय का विषय है। सामान्य से आत्मा एक होते हुए भी ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्यादि से अनेक है । इसलिये दोनों नय स्वक्षेत्र में यथार्थ हैं। आध्यात्मिक नय (४) श्रुतभवन बीपक नय चक्र : नयचक्र धुरन्धर आचार्य देवसेनने पूर्वोक्त दोनों नय विषयक शास्त्रों में मुख्यतः आगम भाषा में तथा गौण रुप से आध्यात्मिक भाषा में नयों का वर्णन किये हैं। आगमन होने के पश्चात् आध्यात्मिक साम्राज्य में प्रवेश करने के लिये आचार्य श्रीने " श्रुत भवन दीपक नय चक्र" का प्रतिपादन किया किया है । यह नय चक्र संस्कृत गद्य पद्यात्मक शैली में हैं देवसेनाचार्यने शास्त्र प्रारंभ में इष्ट देव वर्धमान स्वामी को नमस्कार पूर्वक श्रुत भवन दीपक नय चक्र को प्रतिपादन करने के लिये प्रतिज्ञा की है । आचार्य श्रीने मंगलाचरणमें ही प्रतिज्ञा
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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