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'भाव सग्रह
दशवें गुणस्थान में क्षपक श्रेणी वाले की अपेक्षा एकसो दो पक- तियों का सत्त्व है, उनमें से संज्वलन लोभ की व्यच्छित्ति हो जाती है उसके घटाने पर एकसो एक प्रकृतियों का सत्त्व रहता है।
तेरहवां संयोग केवली गुणस्थान-- मोहनीय की अट्ठाईस, ज्ञानाबरण की पांच दर्शनावरण को नौ अन्तराय की पात्र इस प्रकार धातिया कर्मों की संतालीस प्रकृतियां तथा नरक गति, तिर्यग्गति, नरक गत्यानु. पूर्वी तिर्यग्गत्यानुपूर्वी विकलत्रय की तीन देवायु मनुष्याग्रु, तिर्यगायु. उद्योग, आतप, एकेन्द्रिय, साधारण, सूक्ष्म स्थावर इस प्रकार तिरेसठ प्रकृतियों का क्षय होने से लोकाकाश प्रकाशक केवलज्ञान तथा मनोयोग* वचन योग और काय योग के धारक अरहंत भट्टारक के संयोग केवली मामक तेरहवां गुणस्थान होता है । यही केवली भगवान अपनी दिव्य ध्वनि से भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देकर संसार में मोक्षमार्ग का प्रकाश करते है।
इस गुणस्थान मे पेवल एक सातावेदनीय का बंध होता है।
वारहवे गुणस्थान में जो सत्तावन प्रकृतियों का उदय होता है उनमे से ज्ञानावरण की पांच, अंतराय की पांच, दर्शनावरण की चार निद्रा प्रचला इन सोलह प्रकृतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है इस प्रकार शत्र इकतालीस प्रकृतियां रहती है । इनमें तीर्थकर प्रकृति मिला देने मे व्यालीम प्रकृतियों का उदय होता है।
बारहवे गुणस्थान में जो एकसो एक प्रकृति गों का मत्त्व है उनमें में ज्ञानावरण की पांच, दर्शनावरण की चार, अन्तराय की पांच, निद्रा प्रत्रला इन सोलह प्रकृतियों को व्युच्छित्ति हो जाती है । शष पिचासी प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है ।
अयोग केवली चौदहवां गुणस्थ न- मन वचन काय के योगों से रहित केवल ज्ञान सहित अरहंत भट्टारक के चौदहवां गुणस्थान होता है। इस गुणस्थान का काल अ इ उ ऋ ल इन पांच हस्व स्वरों के उच्चारण मात्र जितना है । अपने गुणस्थान के काल के द्विचरम समय में सत्ता
मनोयोग- द्रव्यमन की अपेक्षा से