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भाव-सग्रह
चतुरस्त्र संस्थान, बैंक्रियिक शरीर देवगति, देवगत्यानुपुर्वी, रूप, रसः गंध, स्पर्श, अगुरु लघुत्व, उपधात परघात, उच्छवास', अस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, सुस्वर, आदेय, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय इन छत्तीस प्रकृतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है । इन छतीस को घटाने पर शेष वाईस प्रकृतियों का बंध इस नौवें गुणस्थान मे होता है।
आठवें गुणस्थाण में जो बहत्तर प्रकृतियों का उदय होता है उनमें से हास्य, रति, सास, शोक, य, असा इन लई प्रकृति की न्युच्छित्ति हो जाती है । शंष छयासठ प्रकृतियों का उदय इस नौवे गणस्थान मे रहता है ।
इस गुणस्थान मे आठवे गुणस्थान के समान द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी उपशम श्रेणी वाले के एकसो ब्यालीस प्रकृतियों का, क्षायिक सम्यग्दृष्टी उपशम श्रेणी वाले के एकसो उन्तालीस और क्षपक श्रेणी वाले के एकसो अडतीस प्रकृतियों का सत्व रहता है।
दशवां सूक्ष्म सांपरायगुणस्थान- अत्यन्त सुक्ष्म अवस्था को प्राप्त लोभ कषाय के उदर को अनुभव करते हुए जीव के सूक्ष्म सांपराम नामका दशवां गुणस्थान होता है।
नौवें गुणस्थान मे बाईस प्रकृतियों का बंध होता है । उनमें से पुरुष नेद संज्वलन क्रोध मान माया लोभ इन पांच प्रकृतियों की च्छित्ति हो जाती है शेष सत्रह प्रकृतियों का बंध होता है ।
नौवे गुणस्थान में जो छयासठ प्रकृतियों का उदय होता है उनमें म स्त्रोवेद पुरुषवेद नपुंसकवेद, सज्वलन क्रोध मान माया इन छह प्रकतियों की व्युच्छित्ति हो जाती है । इसलिय इन छह प्रकृतियों के घटाने पर शंष साट प्रकृतियों का उदय दशवें गुणस्थान में रहता है।
उपशम श्रेणी में नौवें के समान द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी के एक. सौ ब्यालीस, और क्षामिक सम्यग्दृष्टी के एकसो उन्तालीस और क्षपक श्रेणी वाले के नौवें गुणस्थान में जो एकसी अडतीस प्रकृतियों का सत्त्व है उनम में तिरंगति, तियंगत्यानुपूर्वी, बिकलत्रय की तीन, निद्रानिद्रा, प्रचना प्रचला, रत्यानमृद्धि, उद्योत आतप, एकेंद्रिय, साधारण, सूक्ष्म,