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________________ भाव-सग्रह चोथ गुणस्थान में जो सतत्तरि प्रकृतियों का बंध कहा है उनमे में अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ मनुष्यगति मनुष्यगत्यानुपूर्वी मनुष्यायु औदारिक शरीर औदारिक अंगोपांग वववृषभनाराच महनन इन दश प्रकृतियों की व्युच्छत्ति इस गुणस्थान में हो जाती है । इसलियं सतत्तर मे से दश घटाने पर शव सड़सठ प्रकृतियों का बंध इस गुणस्थान मे होता है। चौथे गुणस्यान में एक मौ चार प्रकृतियों का उदय कहा है उनमे से अप्रत्याम्पानावरण श्रोध मान माया लोभ, देवगति देवगत्यान. पूर्वी, देवायु, नरकायु, नरक गति नरक गत्यानुपूर्वो, वैक्रियक शरीर बेक्रियिक अंगोपांग, मनुष्य गत्यानुपूर्वी, तिर्यगत्यानुपूर्वी, दुभंग, अनादेय, अयशाकोनि इन सब प्रकृति की शुचिः इस गुणस्थान में हो जाती है, इसलिये एक सौ चार मे से सत्रह घटाने पर सत्तासी प्रकृतियों का उदय होता है। चौथे गुणस्थान में एक सौ अडतालीस प्रकृतिपों का सत्त्व रहता है उनमे से व्युच्छिन्न प्रकृति एक नरकायु के बिना एक सौ सेंतालीस का सत्त्व रहता है । किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टी की अपेक्षा से एक सौ चालीस का ही सन्द रहता है । छठा प्रमत्तविरत गुणस्थान- संज्वलन और नोकषाय के तीन उदय से संयम भाव तथा मल जनक प्रमाद ये दोनों ही युगपत् एक साथ होते है इसलिए इस गुणस्यानवर्ती मुनि को प्रमत्तविरत अथवा चित्रलाचरणी कहते है । यद्यपि संज्वलन और नोकषाय का उदय चारिष गुण का विरोधी है तथापि प्रत्याख्यानावरण कषाय का उपशम होने से प्रादुर्भत सकल संयम के घात करने में समर्थ नहीं है । इस कारण उपकार से संयम का उत्पादक कहा है। पांचवे गुणस्थान मे सड़सठ प्रकृतियों का बंध होता है उनमें से प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ इन चार प्रकृतियों की व्यच्छित्ति हो जाती है इसलिये इन चार के घटाने पर शेष त्रेसठ प्रकृतियों का
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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