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________________ भाव-सग्रह अर्थ- अलौकाकाश में द्रव्य नहीं है । धर्म द्रव्य लोकालाश में ही है । लोकाका और अलोकाकाश का विभाग करने वाले धर्म द्रव्य का अधर्म दृश्य ही है। जहां तक धर्म द्रव्य है वहीं तक जीव वा पुद्गल गमन कर सकते है तथा जहाँ तक अधर्म द्रव्य है वहां तक ठहर सकते है, बिना धर्म द्रव्य के ठहर सकते है । इसलिये वे सिद्ध परमेष्ठी जहां तत्र धर्म द्रव्य हे बही लोक शिस्त्र र के ऊपर भाग तक जाकर उहर जाते और फिर वे भगवान वहां पर अनंतानंत काल तक विराजमान रहते आगे सिद्धों के स्वरूप में और भी कहते है। जो जत्थ कम्ममुक्को जल थल अयास पव्यए गयरे । सो रिजुगई पवपणो माणुस खसाउ उम्मथई ।। ६१० ।। पणयालसहसहस्सा माणुस खेत्तं तु होइ परिमाणं । सिद्धाणां आवासो तित्तिय मित्तम्मि आयासे ।। ६९१ ।। यो पन कर्मयुक्त्तो जलस्थलाकाश पर्वते नगरे । स ऋजुगतिप्रपन्नः मनुष्य क्षेत्रतः उत्पद्यते ।। ६९० १ पंच चत्वारिंशच्छत सहस्रं मानुष क्षेत्रस्यतु भवति परिमाणम् । सिद्धानामावासः तावन्मात्रे आकाशे ।। ६९१ ।। अर्थ- सिद्ध परमेष्ठी मनुष्य क्षेत्र से ही उत्पन्न होते है तथा उनकी गति ऋज गति होती है जिस क्षेत्र में कर्म नष्ट होते है । उसी क्षेत्र की सीत्र में वे सिद्ध स्थान पर जा कर बिराजमान हो जाते है । जल स्थल आकाश पर्वत नगर जहां से भी कर्म मुक्त होंगे उसी की सीध मे सीध जाकर वे लोक शिखर पर विराजमान हो जायेंगे । मनुष्य क्षेत्र का परिणाम पैंतालीस लाख योजन है। इसलिये पैंतालीस लाख योजन के आकाश में ही सिद्धों का निवास स्थान है जंबूद्वीप की चौडाई एक लाख योजन है उसके चारों ओर लवण समुद्र है उसकी एक ओर की चौडाई दो लाख योजन है । लवण समुद्र के चारों ओर घातकी द्वीप है उसकी चौड़ाई एक ओर की चार लाख योजन है। धात की द्वीप के चारों ओर कालोद समुद्र है उसकी एक और की चौड़ाई आठ लाख
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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