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________________ भावन्मंग्रह करणामों की निवृति नहीं होती इसलिये इस गुण स्थान का नाम अनिवृत्ति करण कहा गया है। हति अणिर्यादृणो ते पडिसमयं जस्स एक परिणाम 1 बिमलयर शाण हुअवह सिहाहि गिद्दड्ढ कम्म वण || भवन्ति अनिवतिनस्ते प्रतिसमयं येषां एकपरिणामः । बिमलतरध्यान हुतवह शिखाभिः निर्दग्ध कर्मवनाः ।।६५१ः। - इस गण स्थान में एक समय में जितने जीत्र होंगे उन सब के एक समान परिणाम होंगे और वे परिणाम निवृत्ति रुप नहीं होते । इस स्थान में रहने वाले मुनिपों का ध्यान अत्यन्त निर्मल होता है तथा इमलिय उस निर्मल ध्यान रूपी अग्नि की शिम्बर में कर्म रुपी वन अवश्य जल जाते है। इस गण स्थान के समय असंख्यात होते है 1 उन में बे ध्यानी मुनि उत्तरोत्तर समयो मे बने रहते हैं । इस गुण स्थान के पहले समय में जितने जीव होंगे उन सबके परिणाम एक से ही होंग दूसरे समय में भी जितने जीव होंग उन सब के परिणाम एक से होंगे। इसी प्रकार तीसरे चौथे पांचवे आदि असंख्यात समयों मे समझ लेना चाहिये । इस प्रकार नौवे गुण स्थान का स्वरूप कहा । अब आग सूक्ष्म सांपराय नाम के दशवे गुण स्थान का स्वरुपकहते जह अणिर्याद पउत्तं खाइय उपसमिय सेढि संजुत्तं । तह सुहमसंपराये दुर्भय होई जिण कहियं ।। यथा अनिवृत्ति प्रोक्तं क्षाहिकोपशमिकश्रेणी संयुक्तम् । तथा सूक्ष्मसापरायं द्विभेद भवसि जिनकथितम् ।। ६५२ ।। अर्थ- जिस प्रकार निवृत्ति करण मे शपक श्रेणी और उपशम श्रेणी दो प्रकार की श्रेणियां वतलाई है उसी प्रकार इस सूक्ष्म सांपराय नाम के दशवे गण स्थान में भी उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी दोनों ही श्रेणियां होती है ऐसा भगवान' जिनेन्द्र देव ने कहा है । सत्थेव हि दो भावा झाणं पुणु तिविह भेय तं सुक्क । लोह कसाए सेसे समलत्तं होइ चित्तस्स ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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