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________________ भाव-मग्नह अर्थ- जो पुरष विशेष रीति से एक आहार दान को ही देता है पंह उस एक आहार दान से ही समस्त चारों दान दिये. ऐसा समझा जाता है। आम यही बात दिखलाते है । भुक्खा कय मरणभयं पासइ जीवाण तेण तं अभयं । सो एव हणइ बाही उसहं फुउत्थितेण आहारो ।। ५२३ ॥ बुभुक्षाकृत मरण भयं नाशयति जीवानां तेन तदभयम् । स एवं हन्ति व्याधि औषधं स्फुटमस्ति तेनाहारः ।। ५२४ ।। अर्थ- देवो भूख की पीडा अधिक होने से मरने का भय होता है इसलिय आहार दान देने से अभयदान की भी प्राप्ति होती हैं। तथा भूख ही सबसे प्रबल व्याधि है । और वह आहार दान से नष्ट होती है। इसलिए आहार दान देने से ही औषध दान समझना चाह्यि । आयाराई सत्यं आहारवलेण पर णिस्सेस । सम्हा तं सुयदाणं दिण्णं आहारदाणेण ॥ ५२४ ।। आचारादि शास्त्रं आहारवलेन पठति निःशेषम् ।। तस्मात तच्छ तवानं दत्तं आहार बानेन ।। ५२४ ।। अर्थ- इस आहार के ही वलसे आचार आदि समस्त शास्त्रों का पठन पाठन होता है इसलिये एक आहार दान देने से ही शास्त्र दान का भी फल मिल जाता है । इस प्रकार एक आहार दान से चारों के फल मिल जाते है । आगे आहार दान का और भी महत्व बतलाते है । हय गयगो बाणाई धरणीरय कणय आण बाणाई। सित्ति ण कुणंति सया जह तित्ति कुणइ आहारो || ५२५ ।। हयगज गोदानानि धरणी रत्नकनक यानदानानि । तृप्ति न कुर्वन्ति सदा यथा तृप्ति करोति आहारः ।। ५२५ ॥ अर्थ- घोडा हाथी और गायों का दान, पृथ्वी, रहन, अन्न, वाहन
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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