SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मः कल्पवृक्ष धर्म कल्पवृक्षस्य अहिंसा दृढमूल: सुरत्न त्रयः स्कंधः क्षमादि दिव्य शाखाः । समिति सुमन शोभे गुप्तित्रयः पराग: अमृतफलं दिव्यः नित्यानन्द रसाल: ।। सरस्वती स्तव सर्वज्ञदेव तनुजा शुद्ध शुभ्रगात्री विज्ञान हंसवाहिनी वेद-चतुर्भुजी। स्थाद्वादबीणा अनेकान्त धर्मधारिणी जगत जननी नमो अमृत वर्षणी ।। सर्वज्ञद्दोद्भुतः पवित्र तीर्थः पूनी अनेकान्तः वहुर्मि स्याद्वाद कलध्वनी ।। अहिसा स्वच्छगात्री भन्यानां तीर्थमूर्ती: ___ ससार ताप ही भव्यानां मोक्षदाश्री ।। अमृत नीति विनयसमं न नीति स्वाध्याय सम तप: स्वरुचिसमस्वाद: प्रेमसमान वन्धः न क्षमापमं शास्त्रं लोमसमान पाएं धैर्य समानं शक्तिः त्रैलोक्ये नान्य अन्य ।। स्वाधीन सुरणं परमेव सुखं भोगसमं रोग न अन्य क्वचित । रत्नत्रयधारी समं न श्रीमान् भारवाही पारेव धनवान् ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy