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________________ भाव-मग्रह किस उपाय से होगा अथवा शुभ कर्मों का आस्रव किस उपाय से होगा इस प्रकार जो जीव चितवन करता है उसका वह ध्यान अपाय विजय नाम का दूसरा उत्तम धर्मध्यान कहलाता है । आग विपाक बित्रय को कहते है । असुह सुहस्स विवाओ चितइ जीवाण चडगइययाणं । विवाविचय झाणं भणियं तं जिणवरिदेहि ।। अ शुभस्त्र दिया हाल जीदान चतुर्गति गतानाम् । विपाक विचयं ध्यानं भणितं सज्जिनवरेन्द्रः ।। ३६९ ।। अर्थ- चारों गतियों मे परिभ्रमण करने वाले जीवों के शुभ कमों के उदय को तथा अशुभ कर्मो के उदय को जो चितवन करता है उसका बह श्यान विपाकविचय कहलाता है । ये जीव अपनें अपने शुभ अशुभ कर्मों के उदय मे ही सुख दुःख भोगते है ऐसा चितवन करना और इन दुखी जीवों का दुःख किस प्रकार दूर हो, ये श्रेष्ठ मार्ग में किस प्रकार लगें इस प्रकार का चितवन करना अपाय विचय नाम का तीसरा धर्मध्यान है। आगे संस्थान विचय को कहते है । अह उढतिरिय लोए चितेइ सपज्जयं सप्तंठाणं । विचयं सेठाणस्स य भणियं झाणं समासेण ।। अध ऊर्ध्व तिर्यग्लोक चित्तयन्ति सपर्ययं ससंस्थानम् । विचयं संस्थानस्य च भणितं ध्यान समासेन ।। ३७० ।। अथ- संस्थान आकार को कहते है। लोक के तीन भाग हे अधो लोक, मध्य लोक, वा तिर्यग्लोक और ऊर्ध्वलोक इनका चितवन करना तथा इनमे भरे हुए पदार्थों का उनकी पर्यायों का उन सबके आकारों का चितवन करना अत्यन्त संक्षेप से संस्थान विचय नाम का चौथा धर्मध्यान कहलाता है। आगे यह धर्मध्यान कहां होता है सो कहते है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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