SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाव-संग्रह प्राणों से जीवित रहता है वह जीवत्वगुण सहित जीव कहलाता है । पज्जाएगाच तस्स हु दिट्टा आवत्ति बेगहणम्भि | अधुवतं गुण दिट्ठ देहस्स विणासणे तस्म || १३५ पर्यायेनापि तस्य हि दृष्टा आवृत्तिः देहग्रहणे । अध्रुवत्वं पुनः दृष्टं देहस्य विनाशने तस्य ॥ २८८ ॥ अर्थ- यह संसारी जीव अनेक पर्याय धारण करता रहता है उसी के समान उसको आकार होजाता है । इस जीव में संकोच विस्तार होने की शक्ति है । जैसे दीपक घड़ में रख दिया जाय तो उसका प्रकाश उतना तथा उसे ही कमरे में रखने पर बढ कर उस कमरे के समान हो जाता है । इसी प्रकार जीव छोटा शरीर धारण करता है तब संकुचित होकर छोटे आकार वाला उसी छोट शरीर के समान हो जाता है और जब वडा शरीर धारण करता है तो विस्तृत होकर उस बड़े शरीर के समान हो जाता है । यद्यपि जीव नित्य है कभी नष्ट नहीं होता तथापि शरोत के नाश होने से तथा दूसरा शरीर धारण कर लेने से वह अनित्य कहा जाता है इसके सिवाय इतना और समझ लेना चाहिये कि ऊपर जो चार प्राण बतलाये है उनके दस भेद हो जाते है क्योंकि स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु और कर्ण के पांच इन्द्रियों के भेद है तथा आयु और श्वासोच्छवास को मिला कर दश भेद हो जाते हैं । इनमें से एकेन्द्रिय जीव के स्पर्शन इन्द्रिय कायवल आयु और श्वासोच्छवास में चार प्राण होते है । दो इन्द्रिय जीव के स्पर्शन रसना ये दो इन्द्रियां तथा कायबल वचनवल और आयु श्वासोच्छवास ये छह प्राण होते है । तेइन्द्रिय जीव के स्पर्शन रसना घ्राण ये तीन इन्द्रियां कायवल वचनवल आयु श्वासोच्छवास में सात प्राण होते है चौइन्द्रिय जीव के एक चक्षु इन्द्रिय और अधिक होती है इसलिय आठ प्राण होते हैं । अनी पंचेन्द्रिय जौव के पांचों इन्द्रियां कायबल वचनबल आयु श्वासोच्छवास ये नौ प्राण होते है तथा सैनी पंचेन्द्रिय जीव के दशों प्राण होते है । मन सहित जीवों को सैनी कहते हैं और मन रहित जीवों को असेनी कहते है । यह सब जीवों का स्वरूप व्यवहारं नय से बतलाया है। निश्चय नय से !
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy