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________________ भाव-संग्रह करता है गवान अरहंत देव के कहे हए वचनोंपर अर्थात् जैन शास्त्रों पर पूर्ण विश्वास करता है। शास्त्रों में अभक्ष्य नक्षण का त्याग और हिंसा का निषध लिवा ही है अदि वह शास्त्रों का श्रद्धान करता है तो भी वह अभश्य पक्षण नहीं कर सकता तथा जी वों की हिंसा नहीं कर सकता। वतमान समय में बहुत से विद्वान् पा विद्वान् त्यागी शास्त्रों के विरुद्ध उपदेश देते है, अयोग्यों को जिन मंदिर में जाने का उपदेश देते है. मुनि होकर भी दम्साओं के यहाँ आहार लेते हैं शास्त्रों में कही हुई भगवान् जिनेंद्रदेव की पूजा की विधि का निषेध करते है अपनी इच्छानसार ही शास्त्रों मे कही हुई पूजा की विधि के प्रतिकुल मन मानी विधि का प्रतिपादन करते है, वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था को मानते नहीं, वर्णसंकर वा जातिसंकर अथवा बीर्यसंकर संतान उत्पन्न करने का उपदेश देते है वे सबसम्यग्दृष्टी नहीं कहला सकते, क्योंकि वे भगवान् जिनेन्द्रदेव के कहे हुए वचनोंपर श्रद्धान नहीं करते किंतु उसके विपरीत श्रद्धान करते है । आगे फिर भी सम्यग्दर्शन का लक्षण कहते हैं। हिसा रहिए धम्मे अट्ठारह बोस वज्जिए देवे । णिगथे पध्वयणो सद्दहणं होइ सम्मत्तं ।। २६२ ॥ हिंसा रहिते धर्म अष्टावा दोषजिते वेवे । निर्जन्थे प्रवचने श्रद्धानं भवति सम्यक्त्वम् ।। २६२ ।। अर्थ- धर्म वही है जो हिंसा से सर्वधा रहित हो, देव वही है जो अठारह दोषों से रहित हो, और गुरू वा मुनि वे ही है जो वाह्य अभ्य तर परिग्रहो से रहित सर्वथा निर्ग्रन्थ हो। इस प्रकार देव शास्त्र गुरु का यथार्थ श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन कहलाता है । आगे सम्यग्दर्शन के गुण कहते है। संदेओ णिन्वेओ णिहा गरहाई उपसमो भत्तो । चच्छल्लं अनुकंपा अटगुणा होति सम्मते ॥ २६३ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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