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________________ भाव-गंग्रह आग अविरत सम्यग्दृष्टी नाम के चौथ गुणस्थान का स्वरूप कहते हवइ च उत्थं ठाणं अविरइ सम्मेति णाम पणियं । तत्थह खइओ भावो खय उपसमिओ समोवेव ।। २५९ ।। भवति चतुर्थ स्थानमविरतसम्यक्त्वमिति नाम: भणितत् । सहि क्षायिको भावः क्षायोयमिकः शमश्चैव ।। २५९ ।। अर्थ- चौथ गणस्थान का नाम अविरल मम्यग्दष्टी है। इस गुणभ्या। में क्षायिक भाव होने हैं, क्षायोपशमिक भाव होते है और ओपशमिक भात्र होते है। एए तिषिण वि भावा दसणमोहं पडुच्च भणिआ हु 1 चारितं णत्धि जदो अविरिय-अंतेसु ठाणेसु ।। २६० ।। एते त्रयोपि भावा दर्शनमोहं प्रतीत्य भणिता हि । चारित्रं नास्ति यतः अविरतान्तेषु स्थानेषु ।। २६० ।। अर्थ- इस गुणस्थान में जो तीनों प्रकार के भाव वतलाये है वे दर्शन मोहनीय के क्षय, क्षयोपशम और उपशम को लेकर बतलाये है। इसका भी कारण यह है कि पहले गुणस्थान से लेकर चौथे गुणस्थान नक चारित्र का सर्वथा अभाव रहता है। भावार्थ- यद्यपि इस चौथे गुणस्थान में चारित्र मोहनीय का उदय है इसलिय चौथे गुणस्थान वाले औदयिक भाव भी कहे जा सकते है परंतु चौथे मुणस्थान तक चारित्र होता ही नहीं है इसलिय यहां पर चारित्र मोहनीय की अपेक्षा ही नहीं रक्खी है । दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय की अनन्तानुबंधी क्रोध मान माया लोभ इन प्रकृतियों का उपशम होने से उपशम सम्यक्त्व इस गुण गुणस्थान में होता है । इन्ही प्रकृतियों का क्षय होने से क्षायिक सम्यक्त्व होता है और इन्ही प्रकृतियों का क्षयोपक्षम होने से क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है । इस गुणस्थान में ये तीनों प्रकार के सम्यग्दर्शन हो सकते है इसलिये दर्शन मोहनीय के क्षय क्षयोपशम या उपशम की मुख्यता को लेकर तीनां
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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