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________________ भाव-संग्रह यत्र च दशरथ पुत्रो राम्रो निवसति दण्डकारण्ये । लंकाधिपतिना छलितः हृता भार्या प्रपंचेन ॥ २२६ ॥ अर्थ - और भी देखो राजा दशरथ के पुत्र रामचन्द्र जव दंडकारण्य ( दंडकवन ) में निवास करते थे तव लंका के अधिपति रावण ने अपनी मायाचारी कर रामचन्द्र को ठग लिया था और उनकी स्त्री मीना को हर ले गया था । विरहेण as faलवद्द पडेइ उठ्ठ इ गियइ सोएह 1 उ पुणइ केन जाया पुच्छद्द वणसावया मूढो ।। २२७ ।। विरहेण रोदिति विलपति पतति उतिष्ठति पश्यति स्वपिति । नहि मनुते तेन ज्ञातः पृच्छति बनशावकान् मूढः ॥ २२७ ॥ १०९ अर्थ - उस समय वे रामचन्द्र सीता के बिरह में रोते थे, तडफते थे, गिर पड़ते थे फिर उठते थे, चारों ओर देखते थे, सोते थे, तथा ज्ञान रहित वे रामचंद्र वन के पशुओं के बच्चों से पूछते थे कि क्या तुमने कही सीता देखी है। इस प्रकार ईश्वर होकर भी रामचन्द्र को मोता की कुछ खबर नहीं थी । जइ उवत्यं तिजयं ता सो कि तत्थ वाणरा रिच्छा | मेलाविण उवहि बंधहि सेलेहि सेउत्ति ॥ २२८ ॥ afar उपरि स्थितः त्रिजगतः तहि किं तत्र वानरान् ऋक्षान् । मेलापयित्वा उदधे बध्नाति शैलः सेतुमिति ॥ २२८ ॥ अर्थ- यदि वे विष्णू वा रामचन्द्र तीनों जगत के ऊपर विराजमान है सब के ईश्वर है तो फिर उन्होंने रीछ और बंदरों को इकट्ठा कर पत्थरों से समुद्रका पुल क्यों बनवाया था ? ft पटुवेद्द दूवं जंप कि सामभेयदंडाई | अलहंतो कि जुज्जह कोवं काऊण सत्येहि ।। २२९ ।। कि प्रस्थापयति व्रतं जल्पति कि साममेवदण्डानि । अलभमानः कि युद्धति कोपं कृत्वा शस्त्रं ।। २२९ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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