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________________ भाव -संग्रह भ्रष्ट होते हे क्रोध मान माया लोभ इन चारों कषायों की तीव्रता को धारण करते हैं अत्यंत मायाचारी होते है फिर न मालूम के दूसरों के लिये धर्म का उपदेश कैसे देते है । भावार्थ- वे दूसरों लिये भी अपने समान ही उपदेश देते है। धर्म का उपदेश कभी नहीं दे सकते । रंडा मुंडा थंडी सुंडी दिविखदा धम्मवारा । सीसे कंता कामासत्ता कामिया विचारा मज्जं मसं मिटु भवखं पक्खियं जीवसोक्खं च । कउले धम्मेसियमोज्मे तं जिहो सम्मसेक्वं ।। १८२ ॥ ५१ रण्डा मुण्डा स्थंडो झौंडो दीक्षिता धर्भदाराः । शिष्या कान्ता कामासक्ता कामिता सविकारा । मयं मांस मिष्टं भव्यं भक्षितं जीवसुखं च । कपिले धर्मे विषये रम्ये तेनैव भवतः स्वर्गमोक्षौ ॥ १८२ ॥ अर्थ- जो स्त्री विधवा हो, मस्तक मुंडायें हो, चंडी वा मद्य पीने चाली हो, दीक्षित हो, किसी की धर्मपत्नी हो, शिष्या हो, कांता हो, काम सेवन की लालसा रखती हो, कामासक्त हो, अनेक प्रकार के विकार वाली हो, उसे सबको सेवन कर लेना चाहिये, खूब मद्य पीना चाहिये, खूब मांस खाना चाहिये, सब प्रकार से सुख देना चाहिये, ऐसा सांख्य मत वाले कहते है। इस प्रकार सांख्य मत विषयों के सेवन से भरपूर मनोहर है और वे लोग उसीसे स्वर्ग मोक्ष की प्राप्ति मानते है । रता मत्ता कंत्तासत्ता दूसिया धम्ममग्गा । हट्टा कट्टा चिट्ठा मुद्राणिदि जो मोक्खममा || अवखे सुक्खे अम्मोक्ले मिसरं विष्णचित्ता | रइयाणं दुक्खद्वाणं तस्स सिस्सा पत्ता || १८३ ॥ रक्तमत्ताः कान्तासक्ता दूषितधर्ममार्गाः । दुष्टा कष्टा घृष्टा अनृतवादिनः निन्विमोक्षमार्गाः || आक्षे सुखे अग्रे दुःखे निर्भ्रान्तं दत्तचिताः । नारकाणां दुःखस्थानं तस्य शिष्याः प्रोक्ताः || १८३ ||
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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