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________________ भाव-संग्रह न जानाति जिनकथितश्रुतं सम्प्रति वीक्षां च गृहीतवान् गौतमः । विप्रो बेदाभ्यासी तस्मान्मांझी न ज्ञानतः ।। १५३ ॥ अर्ज - वर गौतम ऋषि भगवान जिनेन्द्र देव के कहे हुए शास्त्रों को नहीं जानता । वह तो वेद शास्त्रों का अभ्यास करने वाला है। उसने आकार दीक्षा ली थी । इसीलिये भगवान की वाणी खिरने लगी थी । इससे सिद्ध होता है कि मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से नहीं होती अज्ञान ये ही होती है। यदि ज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति होती तो ग्यारह अंग के जानकर ने मेरे होते हुए दिव्यध्वनि अवश्य प्रकट होनी चाहिये थी । मेरे होते हुए दिव्यध्वनि प्रगट नहीं हुई। इससे जान पडता है कि मोक्ष की प्राप्ति अज्ञान से होती हे ज्ञान से नहीं । अण्णाणाओ मोक्खं एवं लोयाण पयडमाणो हु । देवो ण अस्थि कोई सुण्णं झाएह इच्छाए !! १६४ ॥ अज्ञानतो मोक्ष एवं लोकान प्रकटमानो हि । वेयो नास्ति कश्चिच्छून्यं ध्यायत इच्छया ।। १६४ ।। अर्थ- वह मस्करी पूरण समवशरण के बाहर आकर कहने लगा कि मोक्ष की प्राप्ति अज्ञानता से होती है ज्ञान से नहीं होती । इस संसार में देव कोई नहीं है । प्रत्येक जीवको अपनी इच्छा के अनुसार शून्य का ही ध्यान करना चाहिये इस प्रकार मस्करी पूरण ने प्रकट कर अज्ञान मिथ्यात्व को प्रकट किया। आगे ऊपर लिखे पांचों मिथ्यात्वों का त्याग करने के लिये कहते एवं पंचपयार मिल्छतं सुग्गइणिधारणयं । दुक्खसहस्साबासं परिहरियव्वं पयत्तेण ।। १६५ ।। एवं पंचप्रकार मिथ्यात्वं सुगसिनिवारणकम् । दुःखसहस्रावासं परिहर्तव्य प्रयत्नेन ॥ १६५ ।। अर्थ- इस प्रकार विपरीत मिथ्यात्व, एकांत मिथ्यात्व, बैनयिक मिथ्यात्व, संशय मिथ्यात्व और अज्ञान मिथ्यात्व ये पांचों मिथ्यात्व शुभ
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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