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भाव-मंग्रह
अद्यापि सा बलिपूजा प्रथमतरं दीयते तस्य नाम्ना । त कुलदेव उक्तः श्वेतपटसंघस्य पूज्यः सः ॥ १५९ ।।
अर्थ- जिनचन्द्रने जिस प्रकार उस व्यन्तरदेव की पूजा की थी उसी प्रकार सबसे पहले आज तक उसीके नामसे पूजा की जाती है । श्वेतांवर संघ आज तक उसको कुलदेवता मानकर उनकी पूजा करता
भावार्थ- आठ अंगुल लम्बा चौडा चौकोर काठ का टुकड़ा बनाकर उसको शान्तिचन्द्र मानते है और उसीके नामसे उसकी पूजा करते
इय उच्यत्तो कहिया सेवजयाणं च मग्मभट्टाणं । एतो उड्ढे बोच्छं णिसुय अण्णाणमिच्छतं ॥ १६० ।। एषा उत्पत्तिः कथिताः श्वेतपटानां च मार्गभ्रष्टानाम् । इत ऊर्ध्व वक्ष्ये नि: श्रुणुत अज्ञानमिथ्यात्वम् ।। १६० ।।
अर्थ- इस प्रकार निर्ग्रन्थ मार्ग से च्युत श्वेतपट लोगों की उत्पनि बतलाई।
अब इसके आगे अज्ञान मिथ्यात्व का स्वरूप कहते है खसे सुनो।
अयं... वे मनुष्य जिस रुपसे मोक्ष जाते है उसके उसी रूपको अन्य मनान पूजा करते है । यदि मोक्ष की प्राप्ति स्त्रियों को होती है तो फिर उस रुपमें ( स्त्री रुपमे ) जिनेन्द्र देव क्यों नहीं होते अथवा स्त्री को पर्यायस्वरुप कुच योनि विशिष्ट प्रतिमा क्यों नहीं होती। इससे सिद्ध है स्त्रियों को मोक्ष की प्राप्ति कभी नही होती। गग्गो हरु अरहतो रत्तो बुद्धो पियंवरो कण्हो ।
कच्छोटियामा वंभो को देवो कंवलावरणो ।। भमवान अरहंत देव नान है, रक्तांवर बौद्ध है, पीतांबर कृष्ण है कच्छ पहने हुए वेदांती है परंतु ये कंवल ओढने वाले कौन से देव हैं मो आजतक किसी के समझ नहीं आया है भावार्थ ये कंबल बाले देव किसी गिनती में नहीं है।