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________________ भाव-संग्रह पविरकप्पो वि कहिओ अणयाराणं जिणेण सो एसो। चंगच्चेलच्याआ अकिवणतं च पालिहरणे ।। १२४ ।। स्थविरकल्पोपि कथितः अनगाराणां जिनेन स एषः । पंचचेलत्यागोऽकिचनत्वं च प्रतिलेखनम् ।। १२४ !! अर्थ-- भगवान जिनेंद्र देव ने मुनियों के लिये स्थविर कल्पी मुगियों का भी स्वरूप कहा है । जो मुनि पांचो प्रकार के वस्त्रों का सर्वथा त्याग कर देते है अकिंचन व्रत धारण करते है और पीछी ग्यत' है ऐसे मुनि स्थविर कल्पी कहलाते हैं। आगे स्थविर कल्पी मुनियों का स्वरूप और भी कहते हैं । पंचमहन्वयधरणं ठिविभोयण एयभत्त करपत्तो । भत्तिभरण यवत्तं काले य अजायणे भिक्खं ।। १२५ ।। दुविहतवे उज्जमणं छठियह आवासएहि अणवरयं । खिदिसयणं सिरलोओ जिणवर पडिल्य पष्टिगहणं ।। १२५॥ पंचमहावतधारणं स्थितिभोजनं एकभक्तं करपात्रम् । भक्ति भरेण च दत्तं काले च अयापना भिक्षा || १२६ ।। अंडजबुंडजरोमज चर्मज वल्कज पंच चेलानि । यरिहत्य तणजचेलं यो गृह्णीयान्न भवेत्स यतिः । रजसेदाण मगहणं महव सुकुयालदा लहुत्त ज । 'नत्थे दे पंच गुणा ते पहिलिहणं पसेसेति ।। अर्व- सूत के वस्त्र, रेशम के वस्त्र, ऊन के वस्त्र चर्म के वस्त्र और वृक्षों की छाल के बने वस्त्र ये पांच प्रकार के वस्त्र कहलाते है । इन सब प्रकारके वस्त्रों का जो त्याग कर देता है तथा तण से वने वस्त्रों को भी जो ग्रहण नहीं करता वही मुनि कहलाता है । जो पीछी मदु हो कोमल हो, छोटी हो, धूलि मिट्टी को ग्रहण न कर सकती हो ऐसी ही पीछी प्रशंसा करने योग्य है ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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