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________________ भाव-संग्रह उनको नींद भी आती है तथा और आकुलताएं प्रकट होती है । इसलिये परमात्मा भगवान अरहन्त देवकै क्षुधादिक दोष मानना और कवलाहार मानना तर्क संगत प्रतीत नहीं है । आगे भगवान अरहन्त देव के शरीर की स्थिति बिना आहार के किम प्रकार रहती है सो दिखलाते हैं । णोकम्मकम्महारो कवलाहारो य लेप्पहारो य । उज्जमणो विय कमसो आहारो छविहो ओ ॥ ११० ॥ नोकर्मकर्माहारौ कवलाहारश्च लेपाहारश्च । ओजो मनोपि च क्रमशः आहारः षड्विधो शेयः ।। ११० ।। अर्थ- नोकर्म अहार, कर्माहार, कवलाहार लेपाहार, ओजाहार और मानसिक आहार इस प्रकार अहारके छह भेद हैं । गोकम्मकम्महारो जीवाणं होइ चउगह गयाणं । कवलाहारो गरयसु रुक्खेसु य लेप्पमाहारो ।। १११ ॥ नोकर्मकर्माहारौ जीवानां भवतः चतुर्गति गतानाम् । कवलाहारो नरपशूनां वृक्षेषु च लेपाहारः ।। १११ ।। अर्थ- इन छह प्रकारके अहारो में से नौकर्माहार और कर्माहार चारों गतियों मे परिभ्रमण करनेवाले समस्त जीवों के होते है, कवलाहार मनुष्य तथा पशुओं के होता है और वृक्षों के लेपाहार होता है । पक्खीणुज्ज्जाहारो अंडयमजसु वट्टमाणाणं । देवेसु मणाहारो चाउविहो पत्थि केबलिणो ।। ११२ ।। पक्षिणामोज आहारः अण्डमध्येषु वर्तमानानाम् । देवेषु मन आहारः चतुविधो नास्ति केवलिनः ॥ ११२ ॥ अर्थ-- अंडे के भीतर रहने वाले पक्षियों के ओजाहार होता है और देवों के मानसिक अहार होता है । इस प्रकार छहों प्रकार के आहार की व्यवस्था है। इनमे से चार प्रकार का अहार केवली भगवानके नहीं होता 1
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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