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________________ भाव-संग्रह अर्थ- बहुत से लोग पुत्र उत्पन्न होनेके लिये वा अपना आयु वढाने के लिये चण्डी मुण्डी आदो देवी देवताओं की विनय करते है, उनके सामने बकरे आदि का वध करते है तथा मद्य में अपने कूलकी पूजा करते है। णवि हाइ तत्थ पुण्णं किज्जति णिकिट्टरुद सम्भाधा । णय पुत्ताई दाउ सरका ते सत्तिहिणां जे ।। ७७ ।। नापि भवति तत्र पुण्यं कुर्वन्ति निकृष्ट रुद्रस्वभावान् । न च पुत्रादि दातुं शत्कास्ते शक्तिहीना ये ॥ ७७ ।। अर्थ- चण्डी मुण्डी आदि देवता आदर्श देवता नहीं हैं और उनके स्वभाव क्रूर है इसलिये उनकी विनय करने से वा उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती । इसके सिवाय वे सब चण्डी मुण्डी आदि देवता पुत्र देने के लिए वा आयु बढ़ाने के लिये कभी समर्थ नहीं हो सकते । क्योंकि वे सत्र शक्ती से हीन है। जइ ते होंती समत्था कस्थ गया पंडवाइया पुरिसा । कत्थगया चमकेसा हलहरणारायणा कत्थ ।। ७८ ॥ यदि ते भवन्ति समर्थाः कुत्र गताः पाण्डवायाः पुरुषाः । कुत्र गताश्चक्रेशा हलधरनारायणाः कुत्र ।। ७८ ।। अर्थ- यदि वे चण्डी मुण्डी आदी देवता पुत्र देने वा आयु बढ़ाने के लिये समर्थ होते तो फिर पाण्डव आदि महा पुरुष कहां चले गये, चक्रवर्ती कहां चले गये तथा नारायण प्रति नारायण हलधर आदि सब कहां चले गये। भावार्थ- चक्रवर्ती नारायण, हलघर आदि महापुरुष होते है, अनेक देव इनके आधीन और सेवक होते हैं। फिर भी वे देवता अपर्ने स्वामी की आयु न बढ़ा सके और आयु समाप्त होने पर वे लोग स्वर्ग मोक्ष वा नरक में चले ही गये। इससे सिद्ध होता है कि 'उन देवों मे कोई इस प्रकार की शक्ती नहीं है । वे इन बातों के लिये सर्वथा असमर्थ है। इसलिये इस निमित्त उनकी पूजा का बिनय करना सर्वथा व्यर्थ है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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