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________________ ( 3 ) है। क्योंकि वह सलवानी सुवर्ण के समान अभेद रत्नत्रय स्वरूप समाधि काल में प्रयोजनवान होता है । किन्तु व्यवहार अर्थात विकल्प, चंद अथवा पर्याय के द्वारा कहा गया जो स्ववहार नय हैं वह पन्द्रह, चौदह आदि दानी के सुवर्ण लाभ के उन लोगों के लिये प्रयोजन हैं जो लोग अशुद्ध रुप शुभपयोग में जो कि असंयत सम्यग्दृष्टि अथवा श्रावक की अपेक्षा तो सराम सम्यग्दृष्टि लक्षणवाला हैं और प्रमत्त- अप्रमत्त संयत लोगों की अपेक्षा भेद रत्नत्रय लक्षणवाला है ऐसे शुभोपयोग या जीव पदार्थ में स्थित है 1 हार नय त्यागने से हानि यद्यपि व्यवहार नयी बहिर्द्रव्यावलंबनत्येन भूतार्थस्तथापि रागादि विरहित विशुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभाव सहितस्य परमार्थस्य प्रतिपादकत्वाद्दर्शयितुमुचितां भवति यदा पुनर्व्यवहार नयो न भवति तदा शुद्ध निश्चय नयेन स स्थावर जोबा न भवतीति मत्वा निःशकोपमर्दन कुर्वति जनाः । ततश्च पुण्यरूप धर्मामाद इत्येकं दूषणं तथैव नयन राग द्र मोह रहितः पूर्वभव मुक्तो जोवस्तिष्ठतोति मत्वा मोक्षार्थमनुष्ठानं कोsपित करोति तत्स्व मोक्षाभाव इति द्वितीयं च दूषणं । तल्माद् व्यवहार नय व्याख्यानमुचितं भवतीत्यभि गयः । म. सा. त. वृगा. ५१ गद्यपि व्यवहार नथ बहर्दव्य का मालवन लेने से अभूतार्थं हैं किन्तु रागादि बहिर्द्धव्य के आवन से रहित और विशुद्ध ज्ञान, दर्शन स्वभाव के आलम्बन सहित ऐसे परमार्थ का प्रतिपादक होने से इसका भी कथन करना आवश्यक है क्योंकि यदि व्यवहार लय को सर्वथा भुला ( छोड ) दिया जाय तो फिर शुद्ध निश्चय नय से तो बस स्थावर जीव है ही नहीं । अतः फिर लोग स्वच्छंद. निःशंक होकर उनके मर्दन में प्रवृत्ति करने लगेंगे ऐसी दशा में पुण्य रूप धर्म का अभाव हो जायेगा एक दूषण तो यह आये। 1 तथा शुद्ध निश्चयनम से तो जब राग-द्वेष-मोह से रहित पहले से ही हैं अतः मुक्त ही हैं, ऐसा मानकर फिर मोक्ष के लिये भी अनुष्ठान कोई क्यों करेगा? अतः मोक्ष का भी अभाव हो जायेगा, यह दूसरा दूषण आयेगा । इसलिये व्यवहार नय का व्याख्यानं परम आवश्यक हैं, निरर्थक नहीं है । ● आचार्य ज्ञानसागर हिंदी टी से उद्धृत परमार्थनय तो जीव को शहर और राग-द्वेष मोह से भिन्न कहता कहता हूँ | यदि किसी का एकांत किया जाये, तब शरीर तथा राग द्वेष
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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