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भाव-संग्रह
जोवत्वेन हि तुल्या चे यश्चप्यते भवन्तु ते ।
स्त्रीत्वे सति यथा माता अभक्ष्यं जंगम तथा ।।
बंद्याप जी होने के कारण जंगम और स्थावर दोनों प्रकार के जीव समान है परन्तु मांस उत्पन्न होने के लिये समान नहीं है । स्थावर जीवों के शरीर में कभी मांस उत्पन्न नही हो सकता है । जिस प्रकार स्त्री पना हो परने भी माता माता है यह स्त्री नहीं हो सकती इसी प्रकार जंगम जीवो का शरीर कमी भी भक्षण करने योग्य नहीं हो सकता ।
यद्वद्गरुडः पक्षी पक्षी न तु एव सर्व गरुडोस्ति ।
रामेव चास्ति माता माता न तु साविका रामा ।। जिम प्रकार गरुड तो पक्षी होता है परन्तु जितने पक्षी हैं वे सब गरुड़ नही हो सकते । इसी प्रकार स्त्री ही माता है परन्तु माता मव रूप से स्त्री नहीं हो सकती।
शुद्धं दुग्धं न गोमांसं वस्तुवैचिश्यमीदृशम् । विषघ्नं रत्नमादेयं विषं च विपक्ष मम् ।।
जिस प्रकार रत्न और विष दोनों ही समुद्रसे उत्पन्न होते है नयापि रत्न विषको दूर करनेवाला है इसलिये उपादेय है और विष विपत्तिका कारण है इसलिये तज्य है। इसी प्रकार दूध भी गायसे उत्पन्न होता है और मांस भी गायसे उत्पन्न होता है परन्तु दूध' शुद्ध है और मांस शुद्ध नहीं है । यह केवल वस्तु को विचित्रता है।
हेयं पलं पयः पेयं समे सत्यपि कारणे । विषद्रोरायुषे पत्रं मूलं तु मृतये स्मृतम् ।।
यद्यपि दूध और मांस दोनों की उत्पत्ति का समान कारण है गायसे ही दोनों उत्पन्न होते है तथापि मांस त्याज्य है और दूध पीने योग्य है । देखो विष वृक्षके पत्ते आयु बढाते है और उसकी जड मृत्युका कारण है।