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________________ शिष्यों के प्रतिबोधन के लिये श्री कुन्दकुन्दाचार्य देव के द्वारा बनाया हुआ समयप्रामृत ग्रन्थ हैं | समयसार रूप शुद्धात्म तत्व का वर्णन कुन्दकुन्दाचार्य देव ने इस ग्रन्थ में विशेष रुप प्रतिपादन करने स इस अन्य का यथार्थ नाम समयमार है। समयसार के लिये योग्य पात्र समयसार अन्य में वणित जो आत्मतत्त्व उ का प्रत्यक्ष अनुभव निर्विकल्प समाधिस्थित निश्चयनय का अवलम्बन स्थित महामुनि को ही होता है । और मयसार में प्रतिपादित विषय उनके अनुभव भठा एवं आचरण होने के कारण समयमार ग्रन्थ भी महामुनि के लिये ही विशेष प्रयोजनवान अन्तः बाह्म चिस चमत्काररूप "मयसार को आत्मसात कर सकता है 1 जो अन्तरंग बहिरदग ग्रन्थ रूपी गसमय का त्याग किया है वह है, हृदयंगम कर सकता है, आचरण में ला सकता है 1 परंतु जो अन्तरंग बहिरंग ग्रेस्थवान (परिमही) पर सर यन्त जीव है वह केवल इस ग्रन्थ यो अंथरूप से (परिग्रह) सिर पर धारण कर सकता है, परंतु पूर्ण रूप से ग्रहण करके हृदय में ग्रहण नहीं कर सकता है । जैसे कि शेरणो सिंहणी) का दूध जिस किसी पात्र में नहीं रहना उसे सुवर्ण पात्र ही चाहिये, अन्यथा पात्र किन्न-भिन्न होता है उसे योग्य पात्र ही चाहिये । अतः एम्पूर्ण रूप से निर्मोह, निस्संग, निराग, निक्षेप, मुनि ही उस समयसार को जानने के समसने के, कथन करने के पात्र हैं, अन्यथा अपात्र होने पर भी इस समयसार को धारण करने लगे तो जीवन रुपी पात्र छिन्न-भिन्न होगा, तुकडे तुकडे होगा अर्थात स्वच्छंद विषयी-कषायी होगा जैसे भीजन को योग्य व्यक्ति, योग्य रीति से भोजन करके पचाने पर वह भोजन शक्तिवर्धक होता है । परतु अयोग्य व्यक्ति अयोग्य रीति से भोजन करने पर अपचन होकर पाक्ति क्षण होती है, रोगों का कारण बनता है । भोजन कर पर रखने पर केवल वह भार स्त्रम्प होता है, परन्तु योग्य रीति से भोजन करने मे शक्ति वर्षक होता है । उसी प्रकार शास्त्र को केवल सिर पर रखने पर सिर का बोझ बढ़ता है एवं आत्मा को कोई लाभ नहीं मिलता है। इस समयमार में वर्णित शद्धात्म तत्व का परिज्ञान एवं प्राप्ति किनको होता है स्वयं जयसेनाचार्य ने प्रथम गाथा की टीका में काह है . .. निविकार स्वसम्वेदन जानेन शहात्म परिक्षा प्राप्तिर्वा प्रयोजनमित्यभिप्रायः । " इस समयसार ग्रन्थ का प्रयोजन यह है कि निर्विकार स्वसम्वेदन ज्ञान के द्वारा शुखात्मा का जानना व प्राप्ति है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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