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भाव-संग्रह
योनि में उत्पन्न हुए थे वे माता पिता के जीव यदि पुत्र के द्वारा पिण्डदान देने से बा तीर्थस्नान करने से स्वर्गमें जा सकते है तो फिर जो माता पिता पुण्य कम करन हो, कारण स्वर्गम उत्पन्न हुए थे ते माता । पिताओ जीव यदि उसके पुत्र द्वारा कोई ब्रह्महत्या आदि महा पाप किये जाते है तो उस पुत्रके उस दोष से उस पापसे व स्वर्ग में उत्पन्न हुए माता पिता के जीव नरक में भी जा सकते है।
भावार्थ- यदि पुत्रके दान आदि से माना पिताके जीव नर्क में से म्बर्ग भी जा सकते है तो फिर स्वर्ग में भी उत्पन्न हुए माता पिता जीव भी पुत्रके पापम नरक में भी जा सकते है । परन्तु एसा होना सर्वथा असम्भव है। आग इसी विषय को फिर दिखलाते हैं।
अण्णकए गुण दोसे अण्णो जइ जाइ सग्ग गरयम्मि । जो कणइ पुण्ण पावं तस्सफलं सो ग वेएइ || ३६ ॥ अन्यकृताम्यां गुणदोषाभ्यामन्यो यदि याति स्वर्गनरकेषु ।
यः करोति पुण्यपापं तस्य फलं स न वेदयति !1 ३६ ॥ अर्थ- यदि किसी एक पुरुषके गुण बा दोष में कोई दूसरा जीव म्वर्ग नरक जाता है तो फिर कहना चाहिये कि जो पुरुष स्वयं पुण्य बा - पाप करता है उसका फल उसको नहीं मिल सकता । वह भी किसी दूसरे को मिल सकता है ।
णहु वेयइ तस्य फलं कत्ता पुरेसो हु पुण्ण पावस्स । जइ तो कह ते सिद्धा भूयग्गामा हु चत्तारि ।। ३७ ।। न हि वेदयति तस्य फलं कर्ता पुरुषः हि पुण्यपापयोः ।
यदि तहिं कथं ते सिद्धा भूतग्रामा हिं चत्वारः ।। ३७ ।। अर्थ-- जो पुरुष पुण्य करता है वा पाप करता है यदि उसका फल जसको नहीं मिलता तो फिर मनुष्य तिर्यच्च देव नारकी इन चार प्रकार के जीवों की सिद्धि कैसे हो सकगी?
भावार्थ- जो पुरुष पुण्य करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है,