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भाव-संग्रह
अर्थ - जिस प्रकार पिनज्वर वाला पुरुष व पदार्थ को मीठा कहता है और मीठे पदार्थ को कड़वा कहता है. इसी प्रकार मिथ्यात्व में प्रवृत्त हुआ यह जीत उत्तम वर्ष में नहीं करता:
भावार्थ- यहां पर दर्शन अथवा दृष्टि ग्रह का अर्थ श्रद्धान करना है | श्रद्धान दो प्रकार का होता है-एक सम्यक श्रद्धान और दुसरा मिथ्या श्रद्धान 1 सम्यक् श्रद्धान आत्मा का एक गुण है जो मिथ्यात्व कर्म के उदय से विपरीत हो जाता है। इसी को मिथ्या श्रद्धान कहते है । जिस प्रकार पित्तज्वर वाले पुरुष को मोटा पदार्थ भी कडवा लगता है उसी प्रकार मिथ्यात्व कम के उदय से यह जीव यथार्थ धर्म में रुचि वा श्रद्धान नहीं करता और इसीलिये ही वह अपने आत्मा का कल्याण नहीं कर सकता !
यही बात आगे दिखलाते हैं
:–
महरामोहेण मोहियो संतो ।
जड़ काय मज्ज को ण णय कज्जाकज्जं मिच्छादिट्टी तहा जीवो ॥ १५ ॥
यथा कनकमद्यकोद्रवमधुरमोहेन मोहितः सन् । न जानाति कार्याकार्यं मिथ्यादृष्टिस्तथा जीवः ।। १५ ।।
अर्थ- जिस प्रकार धतूरा मद्य और कोदों की मधुरता के मोह से मोहित हुआ यह जीव कार्य अकार्य को नहीं जानता, अपना हित नहीं पहचानता उसी प्रकार मिथ्यादृष्टी जीव भी मिथ्यात्व कर्म के उदय से अपना हित अहित वा कार्य अकार्य नहीं जान सकता । विपरीत श्रद्धान होने के कारण वह अपने आत्मा का स्वरूप अथवा समस्त तत्त्वों का स्वरूप विपरीत ही समझता है और इसीलिये वह अपने आत्मा का अहित ही करता रहता है ।
आगे उसी मिथ्यात्व के भेद बतलाते हैं ।
तंपि हु पंखापयारं वियरो एयंतविणयसंजुत्तं । संसय अष्णाणमयं विवरीओ होइ पुण बंभो ॥ १६ ॥