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________________ १६२ घर जिय पावई सुन्दर णावई ताई भणति । जोवह दूषखइँ आणवि लहु सिवम. जाई कुति । ५६11 वर जीव पापानि सुन्दराणि ज्ञानिनः तानि भणन्ति । जीवानां दुःखानि जनित्वा लघु शिवमति यानि कुर्वन्ति ।।५६।। टोका-वर जिय इत्यादि । वर जिय बरं किंतु हे जी पावर सुंदर इं पापानी सुन्दरा मि समीचीनानि भणंति कथयन्ति । के । णिय शानिनः तत्ववेदिनः । कानि । ताई तानिपूर्वोक्तानी यापानि । कथभूतानि । जीवहं दुक्ख इं जणिवि लहु सिबमई जाइ कुणती जीवानां दुःखानि । जनित्वा लय शीघ्रं शिवमति मुक्तियोयमति यानि कुर्वन्ति ।। अयमत्राभिप्राय: । यत्र भेदाभेदारत्नत्रयात्मक श्रो धर्म लभते जीवस्त - पापजनित दुःखमपि श्रेष्ठमिति कस्मादिति चेल | " आर्ता नरा धर्म- . पग भवन्ति " इति वचनात ||५६।। अर्थ-- आग जिस पापके फलसे यह जीव नरकादि में दुःख पाकर उम दुःख के दूर करने के लिए धर्म सन्मुख होता है, वह पाप का फल भा श्रेष्ठ (शंसा योग्य ) है । एसा दिखलाते है। हे जीव जो पापके उदय जीवको दुःख देकर शीघ्र ही मोक्षके जाने योग्य उपायोंप बुद्धि कर देवे, तो वे पाप भी बहुत अच्छ है, ज्ञानी ऐसे कहते है। कोई जीव पाप करके नरक में गया वहां पर महान दुःख भोग उसमें कोई समय किभी जीवके सम्यक्त्व की प्राप्ती हो जाती है क्यों की उस जगह सम्यक्त्वकी प्राप्तीके तीन कारण है । पहिला तो यह हैं कि तिसर नरक तक देवता उसे संबोधनको (चेताबनेको) जाते है। सो कभी कोई जीव धर्म सुननेसे सम्यक्त्व उत्पन्न हो जावे, दुसरा कारण-पूर्व भवका स्मरण और तिसरा नरकको पीडाकारी दुःखी हुआ नरकको महान दुःखका स्थान जा र नरकके कारण जो हिंसा, झूठ, सोरी, कुशोल, परिग्रह और आरंम्भादिक है उनको खराब जानके णपसे उदास हो । तिसरे नरक तक ये तीन कारण है । आगे के चौथे, पांचवे.
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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