SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रस का आग्वादन नहीं है, और वीतराग दशा में स्वरुप का यथार्थ खान होता है । आकुलता रहित होता है । तथा संवेदन ज्ञान प्रथम अवस्था । में चौथे, पाँचवें गुणस्थान वाले गृहस्थ के भी होता है, वहाँपर सराप देखने में आता है, इसलिये राग सहित अवस्था के निषेध के लि वीतराग स्वसंवेदन ज्ञान कहा गया है । राग भाव है वह कषाय रुप है। इस कारण जब तक मिथ्यावृष्टी अनन्तानुबन्धि कषाय है तब तक तो बहिरात्मा है, उस के स्वसवेदन ज्ञान अलि सम्यग्ज्ञान सर्वथा ही नहीं है। चतुर्थ गुणस्थान में स. यादृष्टी के मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबन्धि के अमात्र से सम्यग्ज्ञान तो हो गया, परन्तु कषाय को तीन चौकडी बाकी रहने स द्वितीया के चन्द्रमा के समान विशेष प्रकाश नहीं होता, आरक्ष श्रावक के पांचवें गुणस्थान में दो चौकडी का अभाव है, इसलिय राग भाव कुछ कम हुआ, वीतराग भाव बढ़ गया, इस कारण से भी स्वसं वेदन ज्ञान प्रवल हो गया, परन्तु दो चौकड़ी के रहने से मुनि के समान प्रकाश नहीं हुआ। मुनि के तीन चौकडी का अभाव है, इसलिये रागः । भान तो निर्बल हो गया । तथा वीतराग भाव प्रबल हो गया । वहाँपर | ग्वसवेदन ज्ञान का अधिक प्रकाश हुआ, परन्तु चौथी चौकड़ी बाकी है। इसलिये छठे गुणस्थानवर्ती मुनि सराग सयमी है ! उसका वीतराव सयमी के जैसा प्रकाश नहीं है । सातवे गुणस्थान में चौथी चौकडी मन्द हो जाती है । वहाँपर आहार-विहार आदि क्रिया नहीं होती। ध्यान में | आरुढ रहते है । सातवें से छठे गुणस्थान मे आते तब वहाँपर आहारादि | क्रिया है । इसी प्रकार छठा सातबा गुणस्थान करते रहते हैं । वहाँप अन्तर्महत काल है । आठवे गुणस्थान मे चौथी चौकडी अत्यन्त मन्द हो | जाता है । वहाँ राग भाव कि अत्यन्त क्षीणता होती है । वीतराग भाव पुप्ट हो जाता है । स्वसवेदन ज्ञान का विशेष प्रकाश होता है । श्रेणी मांडनें गे शुक्ल ध्यान उत्पन्न होता है। श्रेणी के दो भेद है । एक क्षपक दुसरा उपक्षपक, क्षपक श्रेणी वाले तो उसी भव से. केवल ज्ञान पाकर मुक्त हो जाते है, और उपशम पाले आठवे नत्रमें-दसवें से म्यारहवाँ गुणस्थान तक पहुंच पीछे पड़ जाते | हैं: 1 अर्थात नीचे के मुणस्थानों में आते है क्योंकि उसका काल अन्तमहतं है। किन्तु कुछ एक भव भी धारण करते है । तथा क्षपक वाले..
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy