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अर्थः-- यह आराधक भव्य जीव आगम ज्ञान के प्रभाव से अशुभ स्वरूप असंयम अवस्था से शुभ रूप संयम अवस्था को प्राप्त हुआ समस्त कर्ममल से रहित होकर शुद्ध हो जाता है। जिस प्रकार सूर्य जत्र तक प्रभात काल को प्राप्त नही होता है तब तक वह अन्धकार को नष्ट नहीं कर सकता है |
अज्ञान असंयमरुप अंधकार को नष्ट करनेवाले प्राणी के जो तप और शास्त्र विषय का जो अनुराग होता है वह सूर्य की प्रभात कालीन राग ( लालिमा ) के समान अभ्युदय के लिये होता है ।
जिस प्रकार सूर्य फैले हुए प्रकाश को छोड़कर और अंधकार को आगे करके जब ( अस्त ) राग ( लालिमा ) को प्राप्त होता है तब वह पाताल को जाता है । अर्थात अस्त हो जाता है । उसी प्रकार जो प्राणी वस्तु स्वरुप को प्रकाशित करनेवाले ज्ञान रूप प्रकाश को अज्ञान असंयम को स्विकार करता हुआ संसार- शरीर भोग सम्बन्धी राग को प्राप्त होता है तब वह पाताल तल अर्थात आत्म पतन रूप अवस्था को प्राप्त होता हुआ नरकादि दुर्गति को प्राप्त होता है ।
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आत्मारूपी सूर्य अनादिकाल से अज्ञान असंयम मोहम्पी अन्धकार से व्याप्त संसाररूपी रात्री मे संचरण कर रहा है। उसको चिन्ज्योति स्वरुप मुक्ति लोक को प्राप्त करता है उसको पहले अज्ञान असंयम रूपी अंधकार को छोड़कर देव शास्त्र गुरु व्रत नियम सम्बन्धी राग रूपी दिग्वलय मे आना ही होगा । उस समय में पूर्ण अंधकार नहीं प्रकाश भी नहीं परन्तु उस राग आत्मा रूपी सूर्योदय के लिये कारण है । जिस प्रकार सूर्योदय के पूर्व पूर्ण प्रकाश नहीं पूर्ण अंधकार नहीं परन्तु बह लालिमा सूर्योदय के अभ्युदय का सूचक है परन्तु जब जीव देव शास्त्रगुरु-तप-संयम को छोड़कर संसार शरीर प्रति अनुराग करता है वह राग उसके पतन का ही कारण है जिस प्रकार सायंकालीन राग (लालिमा ) पतन का सूचक है अर्थात प्रभात कालिमा और सायंकालीन दोनों राग समान होते हुये भी प्रभात कालीन अभ्युदय के सूचक है और सायंकालीन राग पतन के सूचक है। उसी प्रकार देव-शास्त्र-गुरु प्रति और ससार-शरीर भोग प्रतिराग समान होते हुए एक उस्थान का कारण हो तो दूसरा पतन का कारण है ।
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