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________________ मट्ठारक शुभषद पद्रस्थ होने के पश्चात इन्होंने अपने जीवन का सक्ष्य निर्धारित किया और अपने भारम उद्धार के साथ-साथ समाज के प्रज्ञानान्धकार को दूर करने का बीड़ा उठाया और उन्हें अपने मिपान में पर्याप्त सफलता भी मिली । उन्होंने अनेक स्थानों पर विहार किया पौर जन जन के भृद्धा एवं भक्ति के पात्र बने । येतीयों के वन्दना की जाते तो अपने साथ पूरे संघ को से चलते । एक बार बे संघ के साथ मागो तुगीगिरी की यात्रा पर गए थे और वहां पानन्द के साथ पूजा विधान सम्पन्न किये थे । मांगीतुगी गई जिन भरियार, पूजा कीचा पवित्र निज मात्र । सांसिक त्रीस चोबिमि पूजा, सोभताए, जल यात्रा करी पोष पात्र ।।८।। जब वे नगर में विहार करने तो उनके भक्तगण उनका गुणानुवाद करसे, प्रासा करते और स्तवन में पदो वो रचना करते । इस प्रसंग पर निर्मित एक पद देखिये.-- बांदो श्री शुम चन्द्र सुन्तकारी अभय चार मुनि पार्ट पट्टोधर, अकलंक समी अवतारी । साइ मनजी कुल मंडल नु दर, शानकाला गुणधारि ॥ माणदे घाम तात मनोहर, मध्यम तत्व विवारि ॥२॥ मूलसंघ ग़रहंस विचक्षण वादी विबुध मदहारी। पंच महावत गलशिरोमणि, सुझचार प्रभारी वादो।। मोलाला गणिण बदन विराजित, जनगथ मा नारी वागही विनोद मिया मागे मानी गयो उदारि मही मंदन्न महिमा छ मोथे, की गति जल विस्तारि अमल विमान वानी मग योन, गुगा गाउ नर नारि ||वानी॥५॥ "मचन्द्र" के शियों में पं. श्रीपान, गण, विद्यासागर, जयवागर, पानन्दसागर प्रादि के नाम विशेषतः मुल्ले मनीय है । "श्रीपाल' ने तो शुभचन्द्र के कितने ही पदों में प्रसंशात्मा गीत लिय हैं-जो साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दोनों प्रकार के हैं। म. शुभचन्द्र साहित्य निगाण में प्रत्यधिक कनि रग्बते । यद्यपि उनकी कोई बड़ी रचना उपलब्ध नहीं हो सकी है, लेकिन जो पद साहित्य के रूप में इनकी कृतियां मिली है, वे इनकी साहित्य रसिकता की मोर प्रकाश डालने वाली है। अब तक इनके निम्न पद प्राप्त हुए हैं
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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