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________________ भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र ; व्यक्तित्व एवं कृतित्व नाम जपता न रहे पाप, जनम मरण टाले संताप । प्राये मुगति निवास ॥२९॥ जे नर समरे लोडण नाम, ते पागे मन वंछित काम । ___ कुमुदचन्द्र कहे भासा ||३७॥ (१५) प्रारती गीत भगवान की प्रारती करने से अशुभ कर्मों का नाश होता है पुण्य की प्राप्ति होती है और अन्त में मोस की उपलब्धि होती है। इन्हीं भावों को लेकर यह भारती गीत निबद्ध किया गया है । इसमें ७ पद्य हैं। सुगंध सारंग दहे. पाप ते नदि रहे। मनह वांछित लहे, कुमुदचन्द्र कगे जिन भारती। (१६) जन्म कल्याणक गीत तीर्थकर का जन्म होने पर देवतालों द्वारा उनका जन्माभिषेक उत्सव मनाया जाता है उसी का इसमें वर्णन किया गया है । एक पंक्ति में सिक्षार्थनन्दन के नाम का उल्लेख करने से यह भगवान महावीर के जन्म कल्याणक का गीत लगता है । गीत में ८ पद्य है। प्रत्येक पच चार-चार पंक्तियों का है। (१७) अन्धोलडी गोत प्रस्तुत गीत में वालक ऋषभदेव की प्रातःकालीन जीवन चर्या का वर्णन किया गया है। ऋषभदेव के प्रात: उटते ही अन्धोलड़ी की जाती है अर्थात् उनके अंगों में तेल, उबदन, ये पार, तन्दा लगाया जाता है। तेल तुपड़ा जाया है फिर निमल एवं स्वच्छ जल से स्नान कराया जाता है। स्नान के पश्चात् शरीर को अंगोछा से पोंछा जाता है फिर पीत वस्त्र पहनाये जाते हैं अांखों में वजन लगाया जाता है। उसके पश्चात् नाश्ता में दाख, बादाम, अखरोट, पि.ता, चारोली, घेवर, फीणी, जलेबी, लड्ड प्रादि दिये जाते हैं। ऋषभदेव ने नावा के गरना बहा बारीक वस्त्र पहिन लिये साथ ही में कान में कुण्डल, पाव में पधगड़ी, गले में हार तथा हाथों में वाजूवन्द पहिन लिये और वे सबके मन को लुभाने लगे । गीत में १३ पद्य हैं । अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है बाजूबन्द सोहामणी राखडली मनोहार । रुपे रतिपति जीतियो, जाये कुमुदचन्द्र बलिहार ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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