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मनराम
वाक्य लिखे हैं । कवि की अब तक अक्षरमाला, बडा कक्की, धर्म-सहेली, बत्तीसी, मताराम-विलास एवं अनेक फुटकर पद प्रादि रचनाएं उपलब्ध हो चुकी है।
कवि हिन्दी के प्रौढ विद्वान थे इसीलिये इन की रचनाए' शुद्ध खड़ी बोली में मिलती हैं। जान पड़ता है कि कपि संस्कृत के भी अच्ने विद्वान थे, क्योंकि इन रचनात्रों में संस्कृत शब्दों का भी दिलता है और यह को पई कार्य के साथ।
"मनराम विलास" कवि के स्फुट सवैयों एवं छन्दों का संग्रहमात्र है जिनकी संख्या ९६ है । इनके संग्रह नर्त्ता विहारीदास थे । वे लिखते है कि विलास के छन्दों को उन्होंने छांट करके तथा शुख करके संग्रह किये हैं । जैसा कि विलास के निम्न छन्द से जाना जा सकता है--
यह ममराम किये अपनी मति अनुसारि । बुधजन सुनि की ज्यौं छिमा लीज्यो प्रबं सुधारि ।।१३।। जुगति गुराणी ढूढ कर, किये कवित्त बनाय । कधुन मेली गांडिको, जान हूँ मन वच काय ॥१४॥ जो इक चित्त पर्व परुप, सभा मध्य परवीन । बुद्धि बढ़ संशय मिट, सब होवे प्राचीन ।।९।। मेरे चित्त में ऊपजी, गुन मन राम प्रकास । सोधि बीनए एकठे, किये विहारीदास ।।१६।।
अक्षरमाला
इसमें ४० पद्य है जो सभी उपदेशात्मक हैं। भाव, भाषा एवं शैली की एष्टि से रपना उत्तम कोटि की है । इराकी एक प्रति जयपुर में ठोलियो के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के गुटका संख्या १३१ में संग्रहीत है । स्वयं कवि ने प्रारम्भ में अपनी लधुता प्रकट करते हुए अक्षरमाला प्रारम्भ की है
मन बच कर या जोडिको वेदों सारद माय रे । गुण अधिर माला कहु सुरणौ चतुर सुख पाइ रे ।।
भाई नर भव पायो मिनसको रे
अन्न में कवि बिना भगवद् भक्ति के हीरा के समान मनुष्य जन्म को यो ही गवा देने पर दृःख प्रकट करता है तथा यह भी कहता है कि इस कृति में उसने जो