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भट्टारक रलकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
बारडोली नगरे मनोहार रे, प्राप्यो पदनो भार रे । तब हवो जय जयकार रे. हे संयमसागर भवतार रे ॥ प्रावो०॥
राग बन्यासी
श्री नेमिश्वर गीत सखिय सहू मिलि वोनवे वर नेमिकुमार ।
तोरण थी पाछा वल्या. करीस्पी रे विचार ।। १ ।। राणीमती अति सुन्दरी गुणनो नहीं पार ।
इंद्राणी नहीं अनुसरे जेहनू रूप लगार ॥ २ ॥ वेणी विशाल सोहामणी जीत्यो श्याम फरिणव ।
__ भाल कला प्रति हबड़ी, परधो जस्योषन्द ।। ३ ॥ प्रांखडली कज' पाखडी, काली मरिणयाली ।
काम तणा शर हारिया जेहन सु नीहालो ।। ४ ॥ प्रानन हसित कमल जस्यु' नाक सरल उतंग ।
घण करीस्यु' वखाणीये सुद्धा चंच सुचंग ॥ ५ ॥ अरुण अधर सम जपता जेहवी पर वाली।
वचन मधुर जांणी करी कोयल थई काली ॥ ६ ।। कंठे कंबु हरावीयो हेय. हरे चिन्त ।
बाहुलता प्रति लेहकती कर मन मोहंत ।। ७ ।। प्रधर अनोपम पातलू जेहन पोयण पांन ।
हरी लंकी कटि जाणिये उरूं रंभ समान ॥ ८॥ पान्हीस उची अति रातडी प्रांगलष्टी तेहवी।
सर्व सुलक्षण सुन्दरी नहीं मलसे एहवी ।। ९॥ रहो रहो लाल पाछा चलो कस्य वचन ते मानो ।
___ हास विलास करो ती अलि घणू माताणि ॥ १० ॥ एह वचन मान्यु नहीं लीधो संमम भार ।
___ तप करीस्यां सुख पामिया सज्जन सुस्वकार || ११ । कुमुदचन्द्र पद बांदलो अभयचन्द उदार ।
धर्मसागर कहे नेमजी सहू ने जय-जयकार ॥ १२ ।। || इति श्री नेमिश्वर गीत ॥