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________________ मट्टारक रतनकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र ; व्यक्तित्व एवं कृतित्व श्री रतनकोति सुरिवर अतिराय, तेह परमादे जिन गुण गाय । नम्मंड गुर जामि !! : ॥ { ५५ ) लोडरण पार्श्वनाथनी विनती समरू' सारदा देषि माय, अनिशि सुर नर सेवे पाय । पाये वचन विनास ॥ १ ॥ लार देस दीसे अभिराम, नगर उभोई सुन्दर ठाम । जाहा छे लोडण पाश ॥ २ ॥ प्रावे संघमली मनरंगे, नर नारि वांदे सहु संगे। पूजे परमानंदो ॥ ३ ॥ जय जयकार करे मन हरणे, जिन उपर कुसुमांजलि वरषे । स्तवन करे बहु छंदे ।। ४ ।। गाये गीत मनोहर सादे, पच सबद बाजे करि नादे।। ........ .... नारि दृद ।। ५ ।। बेलुनी प्रतिमा विल्यात, जाणे देस विदेसे वात । सोहे शीस फरसेंद ।। ६ ॥ सागरदत्त हतो वणजारो, पाले नियम भलो एक सांगे। जिन वंदी जय वानी ।। ७ ।। एक समय वाटे उतरीये, जम वावेला जित सांभरीयो । संच करें प्रतिभानो ॥ ८ ॥ बेलुनी प्रतिमा प्रालेखी, वांदी पूजीने मन हरखी। ते पथरावि कुपे || ६ || त्यारे ते वलुनी मूरत, जल मांहि थई सुन्दर सूरव । अंग अनोपम रूपे ।। १०॥ वजारो ते वेहेलो प्राव्यो, बलतो लाभ घणो एक लाग्यो । उतरीयो तेणे ठामे ।। ११ ॥ सागरदत करे सु बिचार, वाटे कुशल न लागी वार । ते स्वामिने नामे ॥ १२ ॥ राते सुपन हवू ते त्यारे, केम नांखी कूष मंझारे | काढ ईहा थी मझने ।। १३ ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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