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भट्टारक रत्नकौति एवं सुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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बारडोली मध्ये रे, पाट प्रतिष्ठा कोष मनोहार । एक शत पाठ कुभरे हाल्पा निर्मल जल अतिसार ॥ सूर मम प्रापयो रे सकल संघ सानिध्य जयकार । कुमुदचंद्र नाम महसू रे, संघांव कुटंब प्रतापो उदार ।। ७ ।।
(४४) घालि--मोटो मुनि जी मोहन रूपे जाणिए ।
गीत :
मुखमंडल जी पूरण शशि सोहामणो।
रूप रंग जी करुणावंत कोडामणहो ।। नोटक---कोडामणो ए रूप रंगि रतनकीरत सूरीराय जी ।
एक ते बिते अनुभव्यो, पूजो ते ए गोर पाय जी ।। पाय पूजो गुरु तणा जिग पामो सम्व भंडार जी ।
सूदर-दीसे सोभतो भवियण नो प्राधार जी ।। वालि-क्रीयां . .... . .... पतिपाले भलो।
अभिनंदह जी पाटि, यो गुण निलो ।। विद्यायंत जी शास्त्र सिद्धान्त सहूं ला ।
संगीत सार जी पिंगन' सह पाठे कहे ।। बोटक-पिंगल सह पाठई कहेने बागी विबुध विशाल जी।
पर उपकारी पुण्यवंत भलो जोव दया प्रतिपाल जी ।। जीव दया प्रतिपाल सूरिगए गोर गच्छपति सार जो।
मूलसंध माहि महिमा बरणो सरस्वती गच्छ सिणगार जी ।। चालि-गिहउ भोर जी क्षमावा माधु जॉणीए ।
माया मोह जी मच्छर मनमानाणीए । एहयो गोर जी तप लेजे सो जीपतो ।
अवनि माहि जी दिन दिन दीस दीपतो ।। प्रोटक-दिन दिन दीसे दीपतो ने हबंड व माज जी ।
सिंहासरण सोहे भलो लीना लावन्य लाऊ जी || लील लावण्य खाज कहोइ रतनकीरति सूरीराज जी । कर जोडी ने यमुद चन्द रोचक गारयां काज जी ॥