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________________ भट्टारक रश्नकौति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नहीं तर रे प्राणत जस्ये देह के ग्रीसम रति ।। फल्या ते चंपक केवडा फल्यु ले वन सह कोय । पानडा परिंग नहीं करने, पुण्य पानि किम रुडी सम्पति होय के ॥ १६ ॥ तहको पडे प्रति दोहिलो, रवि तपे पर्वत शृग । प्रति झाल लागे लु तरणी हयै प्रावों रे मुझ, फज मृगाक ।। १५ ।। कर्पूर वाशित वारिस्यु चन्दने चरच अंग । केसर धसी करु छ। टणा, जो तु राखेरे हमारा मन तपो रंग के ॥ १७ ।।। कामिनी करि शृगार, सरसी करे वन जल केलि । सामला मूको मायला मुझ सरिसोरे प्रिय मनडू मे सिके ॥ १६॥ इम झरती राजीमती, जई चठी गिरिनारि । सूरी कुमुदचन्द्र प्रमु नैमि ने धन्यासी रे पायो है बलिहार के ।। २५ ॥ ( ३४ ) बणजारा गीत यण जारा रे एहू संसार विदेस भयीय ममीतु उसनो । तेरी घणी घणी बार ज्यारे गीस पुर जोइयां ।। १ ।। 'लख्य चोराफी योनि माम मांहि तु सत्रम्रो । ___मनस्य विमांसी जोय खोटे वणजे राणयो थयो ।॥ २ ॥ मूल गयु तिरिणु वार खोटि प्रावी दुखियो थयो। जीब तु चतुर सुजाण गोह ठगा रे भोल व्यो ।। ३ ।। कीघा कुसंगति प्रीति सात व्यसन ते सेवीया ।। पाप कर्या ते अनन्त जीव दया पाली नहीं ।। ४ ।। सांधो न बोलियो बोल मरम मोसाबहु बोलिया । पर निदा परतीति ते करी पण जासते वणजारा रे ॥ ५ ।। प्राप खाण्यु अपार, अवगुण ते सहु उलया ।। कुड कपटनी स्वाणि, परधन से चोरी लिया ॥ ६ ।। उलवी विसरी वस्तु, थापिज मूफी ससवी ।। विषय विलूधो गमार, परनारी रंगे रम्यो ।। ७ ।। योवन मद श्रयो अंघ, हुहुहु करतो फिरयो॥ , रीस करी पण काज, गुरण नवि जाण्यो अमा तणो || || इंद्रिया पोस्यां पांच, पाप विचार को नहीं ।। पुत्र कलर ने काजि, हा हा ह तो हीडीयो ॥ ६॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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