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भट्टारक एवं रत्नकीति : मुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व
गज गामि प्रावो भामिनी ए: पुजेवा पुजेका सुव्रत पाय ।।गज॥ तात सुमीत्र मनोहर रे, जेहनी पोमादेवी माय । मुख सोहे जेहबो चांद लो, रे, स्यामल स्यामल वर्ण सुकाय ॥ २॥ उचया प्रति जेहनुरे, वीमा धनुष परमारण । मोर मादाम निमोरे, माणघण मनाच्यो प्राण ग||३|| नयर राजगुह उपना रे, जग गुरु जगदानंद । ध्यान करे नित जेन रे, मुनिवर मुनिवर केव' वृद ।।गज०॥ ४ ॥ प्रगट्यु तीर्थ जेणे वीसमुरे, मनवांश्रित दातार । गुणसागर प्रति रुवडारे, जेहनां वचन अतिसार |गज। ५॥ दीनदयाल सोहमणी रे, सुदर करुणा सींधु । जगजीवन जग राजोयोरे कारण कारण वीणए बंधु ॥गज०॥ ६ ॥ रोग सोग नामे टले रे सहान वीषन हरे दूर । सेवो भविक तम्हे भावसुरे, विनवे विनवे कुमुदचंद सूर ।।गज०॥ ७ ॥
॥ इति मुनिसुव्रत गीत समाप्त ।
( ३२) हिन्बोलना गीत विनय करीने बीनबू हीदोली डारे, भगवति भारति माय । बेह नामि मति पामीये हिन्दोलीडारे वलि रे विमलमति थाये ॥ एक समय सू हिन्दोलहारे हीवती सखिय वे च्यार । चन्द्र किरण सम उजलो ॥ इखले झलके तोहार राति रुडी अजूवालड़ी ॥ हि ॥२॥ धरि परि उछल रास || गाय ते गीत सोहामणी कामिनी करे रे विलास ।। ३ ।। स्थारि राजुल' कहे हे सखी. साभलो एक सन्देश। जाउ सखी जइ बीनवो, सुन्दर नेमि नरेश ॥ ४ ॥ माहरी पती को बीमती, प्रणमीय तेहना पाय । तुझ बिना पल एक मुझने घडीय बराबरि थाय ।। ५ ॥ घड़ी एक पहोर समानडी, पहोर दिवस दिन मास । मास वरस दिन जेवटी घरस युगांतर तास ॥ ६ ॥ राति दिवस राजीमती समरै छ तम तखो नेह । जिम सरोबर हसलो, बापियडा मन मेह ।। ७ ।।