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________________ भट्टारक रनकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व १५७ दम-डम जंगी ढोल धस्कें । सांभलतां कायर मुख सुकें । दो-दों मद्दल तवल नफेरी । के के झल्लरी सम्भः मेरो ।। ११० ।। बाजे काहल ताल कशालं । पूरे शंस सुवंश विशालं । वोले भाट घटाइ गाळे । खहखरीचा श्रागल यी काळें ॥ १११ ॥ एहत्रि अधिक दिवाजे जाये । वोहोला दल पोहोवी नवि माये । रुनकटीआ आागल थी बाधर कांपी भाइ करेले पाधर ।। ११२ ।। कड अडारा मोटा पाडी । वांकी वाद समारेखाडी । अंति अलगार करे ते मोटी बातें कहीथाये नवि खोटी ॥ ११३ ॥ चोंप करी चात्यां चकोवल । नेगें ज पोहोता अतुली बल । ते पहेलो आयो बाहुबली । दीवों चांपि खड्यो रणभूतल ।। ११४ कर मुकाम रह्या ते रजनी । उग्यो दिनकर वाली धजिती । त्यारे रणवाजित्र ज बागां । सांभलता कायर भन भांग ।। ११५ ।। शूर सुभट रहबट खलभनीया | मेहेतारण अंगणे जमली । मांडयु युद्ध महीपति चढीओ छूटे पावोरगीर सायें | I चोर वीर ग्रागल थी बढीया ।। ११६ ।। का िकटारी झीसे हाथ । थामें धनुष चढावी पाला । अहमहमिकया न दीये टाला ।। ११७ ॥ झग भगता भाला भल भोके भक भक्तां होदी मुखें ऊके । छूटे नाल हवाई हेका । बन्धूके मारे बहु लोका ॥ ११८ ॥ मोढ़े मुगर शिल्हे सह फोडे । चंचल व चमर वर थोड़े | मात्रे घड़ बाजे र तुरा। सुम्दर मारि करें चकचूरा | ॥ ११६ ॥ मदगे लागज कल शुड़े । पाछल थी हाला पर गुडे । सत ss नाखेते कटकी ! झटकेशटकक ते कटकी ॥ १२० ॥ नाना धाय पड्यो बहु प्रारणी बलबलता वह मांगे वाणी । हरव्या भूत पिशाच निशाचर । व्यंतर बेताला शंकाकुलर ।। १२१ ॥ नदी दोघे विकराला । गुड रण भूमि कराला । रुधिर नेजा तेज करता मारे तो पण नवि को जीले हारे ॥ १२२ ॥ आर्या सदयः समरं घोरं कृतवंतो वर्जिता भटाः सचिवैः । 2 कार्यं नृपतिनियोग, विनानि कर्त्तुं युक्त मिति विचित् ।। ३ ।। ११३ ॥
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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