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हिन्दी जैन कवियों की साहित्यिक सेवा का हिन्दी जगत के सामने प्रस्तुत करने के लिये जितना अधिक व्यापक अभियान छेड़ा जावेगा हिन्दी के विद्वानों, शोधाथियों एवं विश्व विद्यालयों में उतना ही अधिक उनका अध्ययन हो सकेगा। इन कवियों की साहित्यिक सेवा प्रों के व्यापक प्रचार की दृष्टि से साहित्यिक गोष्ठियां होना यावश्यक है जिसमें उनके कृतित्व पर खुल कर पर्चा हो सके साथ ही में विभिन्न कत्रियों से उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके ।
भट्टारक रत्नकोति, कुमुदचन्द्र अादि ऋषियों की रचनायें राजस्थान के विभिन्न भण्डारों में संग्रहीत हैं। जिनमें ऋषभदेव, हू गरपुर, उदयपुर, जयपुर, अजमेर, प्रादि के शास्त्र भण्डार उल्लेखनीय हैं। छोटी रचनायें होने से उन्हें गुटकों अधिक स्थान मिला है । जो उनकी लोकप्रियता का होता है। तत्कालीन समाज में इनका व्यापक प्रचार था, ऐसा लगता है । इसलिये अभी बागढ एवं गुजरात के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत मुटकों की विशेष खोज की आवश्यकता है जिससे उनकी और भी कृतियों की उपलब्धि हो सके । साभार
__पुस्तक के सम्पादन में डॉ० नेमीचन्द जैन इन्दौर, डॉ. भागचन्द भागेन्दु दमोह एवं श्रीमती सुशीला बाकलीवाल जयपुर ने जो सहयोग दिया है उसके लिये मैं उनका पूर्ण प्राभारी हूँ। इसी तरह मैं पं. अनूपचन्द जी न्यायवीर्थ का भी प्राभारी हूँ जिनके सहयोग के प्रभाव में पुस्तक का लेखन नहीं हो सकता था।
पुस्तक के कुछ पृष्ठों को जब मैंने परम पूज्य याचार्य विद्यासागर जी महाराजा को जबलपुर में दिखलाया तो उन्होंने अपनी हादिक प्रसन्नता प्रकट करते हुए भविष्य में इस ओर बढ़ने का आशिर्वाद दिया । इसलिये मैं उनका पूर्ण प्राभारी हूँ। मैं परम पूज्य एलाचार्य विद्यानन्द जी महाराज का भी आभारी हैं जिन्होंने अपना शुभाशीर्वाद देने की महती कृपा की है। अन्त में मैं श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी के सभी माननीय सदस्यों एवं पदाधिकारियों का आभारी हूँ जिन्होंने प्रकादमी की स्थापना में अपना ग्रार्थिक सहयोग देकर समस्त हिन्दी जन साहित्य को प्रकाशित करने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया है । जयपुर ८--८१
डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल
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