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प्राचार्य चन्द्रकीर्ति
चतुर चारित्र पछेडली रे, सोहे श्री गुरु अंगि रे । सूरी श्री रलकीरती सोहे रे, मोहे महिमंडल रंग रे। श्री जिनागम सूत्र नीपनी रे, 15 अगुवाहः एह रे । संयम सरोवरे धोई जेरे, पुरातन पले पाप जे हरे ।। श्री गुरुवाणी हरडा करी रे, तेह तणो दीधो पास रे । प्रागम फट को रंग दोढ करी रे, अध्यातम मनोपम तीसरे ।। ध्यान कडाई रंग उकालीजे रे, तप तेल दीधे ए भूर रे । समकिस चोल रंग गह गयो रे, पुण्य पल्लव सुख सुख पूर रे । विमल कमल पंच प्रत तणां रे, पान पंच सुमति नां फुलां रे । अण्य गुपति रेखा सोभती रे, घरती विविध परिनेह रे । सील समोह फरती कुलडी रे, मूलगुरण मणि गुण छौंट रे । उत्तर चोरासी लख्य बेलडी रे, जोये रुडी ग्यांन नी प्रीत रे । सुन्दर चारित्र पछेलडी रे, सोहे रत्नकी रति मुनींद रे । चन्द्रकीरति सूरी वर कहे रे, चारित्र पछेडी सुख वृद रे ।।
इति चारित्र पुनडी गीत समाप्त कषि ने भट्टारक कुमुदचन्द्र पर भी पद लिखे हैं जिसमें कुमुदचन्द्र के गुणों का बखान किया गया है । एक पद देखिए
राग अन्यासी
वंदो कुमुदचन्द्र सूरी भवियण सरस बखान मनोहरवाणी, सेवे सदा पद गुरिणयग ॥ १ ॥ पंच महानत्त पंच सुमति, अण्य गृपति वर मंडल । पंचाचार प्रवीण परम गुरु, मथित मदन मद सांडन 1॥ २॥ शास्त्र विचार विराजित नायक, विकट वादी मद भंजन ।
चन्द्रकीति कहे घोभित सदगुरु, सकल सभा मन रंजन । ३ .' चन्द्रकीति द्वारा निबद्ध चौरासी लाख जीवजोनी बिनती भी मिलती है।
६२. संयमसागर
मे चटारक कुमुदचन्द्र के शिष्य थे। ये ब्रह्मचारी थे। संघ में रह कर अपने गुरु को साहित्य निर्माण में योग देना तथा बिहार के समय भट्टारक कुमुदचंद्र