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भट्टारक रनकीर्ति एवं कुमुदषन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सोहल स्वप्न
सोलह स्वप्न लघु कृति है जिसमें तीर्थंकर की माता को माने वाले सोलह स्वप्नों के बारे में वर्णन दिया हुआ है। जिन जन्म महोत्सव १२ क्यों की कृति है । पद्मावतींनी विनती में पद्मावतीदेवी का स्तवन है जो १० छप्पय छन्दों में पूर्ण होती है । इसी तरह चन्द्रप्रभविनती १८ पद्यों की रचना है । कवि ने इसके अन्त में अपन परिचय निम्न प्रकार दिया है
कवि की रविव्रत कथा अच्छी कृति है जो ३६ पथों में पूर्ण गुजराती प्रभावित है । काव्य रचना का एकमात्र उद्देश्य कया पद्य देखिये --
मूलसंघ नमचन्द्र सम प्रभयचन्द्र तस पाटे भूषण हवा सौभ्यचन्द्र सेह नेतृ थि वाणि गंदे उदार, प्रभू विद्यासागर तरणोपायों पार | शुभ संवत सत्तर चोबीस समे, नम मास यदि सप्तमी भोभ दिने । कर जोडी ने विनती एह कहे, बहु जीवन धन सुख तेह लेहे ॥८॥
१.
पुत्र कहे माता सुरणो व्रत ए नहि सार खरच नहि जिहां धन लग्गु ते जाणो भासार एहवा वचने बहु कहि व्रत निया किधि । जाणे पाप जंतांजलि षट पुत्रे विधि
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६०. ब्रह्मधमं रुचि
भट्टारक लक्ष्मीचन्द्र की परम्परा में दो प्रभयचन्द्र भट्टारक हुए। एक मभयचन्द्र [सं १५४८ ] श्रायनन्दि के गुरु अभयचन्द्र भट्टारक कुमुद•
थे तथा दूसरे चन्द्र के शिष्य थे। दूसरे श्रभयचन्द्र का पूर्व पृष्ठों में परिचय दिया जा चुका है किन्तु ब्रह्म धर्मरुचि प्रथम प्रभयचन्द्र के शिष्य थे। जिनका समय १६वीं शताब्दि का दूसरा चरण था। इनकी अब तक ९ कृतियाँ उपलब्ध हो चुकी हैं। जिनमें सुकुमालस्वामिनी रास' सबसे बडी रचना है। इसमें विभिन्न छन्दों में सुकुमाल स्वामी का चरित्र वर्णित है। यह एक प्रवन्ध काव्य है । यद्यपि काव्य सगों में विभक्त नहीं है लेकिन विभिन्न भास छन्दों में विभक्त होने के कारण सर्गों में विभक्त नहीं होना खटकता नहीं है। रास की भाषा एवं वर्णन शैली अच्छी है । भाषा की इष्टि से रचना गुजराती प्रभावित राजस्थानी भाषा में निबद्ध है ।
रास की एक प्रति महावीर प्रन्थ अकादमी के संघ में है।
होती हैं । भाषा कहना है। एक