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बलवंत विलक्षण गुणनो गेहू, पोयणपूरि नगरीये राजे एह । सुखद सुभट नर नमिल पाय, जंग जीत्यो....
॥ ५ ॥
मानसँग दीठ्ठो जब जेष्ठ भ्रात, वैराग धरो वन माहे जात | दधे राजकाज महाबलने श्राज, प्रभु चाल्यां श्रात्मा करवा काज ॥ ४ ॥ कैलासगिरि प्रादिनाथ वास, जं चारित्र लघू मन उल्लास । सता ज्वालि माया जाल, क्षमा बडगघरी हणो कोष काल ।। ५ ।। मद गज राक्षो घेरी 1
ची मुगति नार ॥ ६ ॥
६० श्रीपा
जीत्यो समाकेत पाजे सभी
नप करता गत एक वर्ष सार, पछे कमंहगी जय बाहुबली देवाधिदेव, तुझ सुर नर किन्नर करेय रोव । पंचम काले प्रतान वीर तू सकल सुरमा के प्रवीण 11 ७ ॥ माल तोरे नामे बड़े न पीसाच काल पार तू मन गाम को पुरे
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ढोरे नाम भूजंग पुष्प तोर नामे अर्णव जावे
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'लेख बानसिंह दूरे जाय, भूजबनी तोरा नाम तले पसाकय । सुभ सागर तट मोहे नबर रम्य, रुडु
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मे अनोपम दपण वन्य ॥ ९ ॥ ताहां सघपति हेमजी घमंवंत से वीक अंश हुब ससंग । भुजवली मोहे तल गेहू चंग, प्रभु पद उपजे श्राणंद ॥ १० ॥ श्री मुलसघ माहूत संत जयो रलकीवि गोर विद्यावंत | तस पद उदयों विद्या समुद्र, वादीगज केसरी कुमुदचन्द्र ॥ ११ ॥
तस पाट पट्टोअर प्रगटो गूर देखो वचनकल गया वादीपुर | सूरि प्रभवचन्द्र उदयो दिनेस कर जोडी मे सेवक (श्रीपाल ) नाम सोस ॥ १२
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घृत कहलीजनो विनती-- हंसपुरी में कमला नामक श्राविका थी। वह प्र दिन पंचामृताभिक करती थी । एक सत्रि को उसको स्वप्न आया कि य आदिनाथ की प्रतिमा का घो से धमिषेक किया जावे के सब सिद्धियां प्राप्त होगी प्राप्तः होने पर प्रतिमा को घी से अभिषेक किया गया । अभिषेक किया उसी के सब सिद्धिया प्राप्त हो गयी। अपनी इस विनती में उल्लेख किया है। रचना सा
हैं ।
के पश्चात जिसने
इसी का श्रीपाल कवि
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है । विनती में
श्रीपाल ने कुछ गीत भी लिखे हैं जिनमें अदिनाथ, भरतेश्वर नेमिनाथ अ का स्तवन किया गया है । सब ध क गीत यदिनाथ के है जिनसे पता चल हैं कि वे भ ऋपगदेव के अधिक उपासक थे। एक ऋषभदेवनुगीत में "धूले ब