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________________ १७४ भरतेश वैभव क्या जानें आप जो कहेंगे उसे डम सनला जानते हैं । उससे अधिक हम कुछ भी नहीं जानते हैं । भाई ! क्या ही अच्छा निरूपण हुआ । भगवंत का यह दिग्ध तत्वोपदेश क्या, कर्मरूप भूमिके अन्दर छिपी हुई परमात्मनिधिको दिखानेवाला यह दिव्यांजन है । वह परमात्मका दिव्यवाक्य क्या ? देहकूपपापांधकारमें मग्न परमात्माके स्वरूपको दिखानेवाला रत्नदीप है। कलिहर भगवतका तत्वोपदेश क्या? भवरूपो संतापसे संतप्त प्राणियोंको मुलाबजलकी नदीके समान है। हमारे शरीरमें हो हमें परमात्मा का दर्शन हआ। अगाधभवसमुद्र हमें चुल्लूभर पानीके समान मालम हो रहा है। भगवन् ! हम सब इस फंदमें पड़े नहीं रह सकते हैं। बड़ा भाई जिस प्रकार चलता है उसी प्रकार धरभरकी चाल होती है। इसलिए भाई ! आप जो कहेंगे वही हमारा निश्चय है। हमारा उद्धार करो। रविकीतिराजने कहा कि ठीक है । अब अपन सब कैलासनाथ प्रभुके हायसे दीक्षा लेवें । यही आगेका मार्ग है । तब सबने एक स्वरसे सम्मति दी। भगवसकी पूजा कर अनंतर दीक्षा लेंगे, इस विचारसे वे सबसे पहिले भगवंतकी पूजामें लवलीन हुए । इस प्रकार व्यवहार व निश्चयमार्गको जानकर वे भरतकुमार आगेकी तैयारी करने लगे। वे सुकुमार धन्य हैं जिनके हृदयमें ऐसे बाल्यकालमें भी विरक्तिका उदय हुआ। ऐसे सुपुत्रोंको पानेवाले भरतेश्वर भी धन्य हैं जिनकी सदा इस प्रकारको भावना रहती है कि "हे परमात्मन् ! आप सफलविकल्पवजित हो ! विश्वतत्व दीपक हो, इसलिए दिव्यासुजान स्वरूपो हो, अकलंक हो, त्रिभुवन के लिए दर्पणके समान हो, इसलिए मेरे हत्यमें सदा निवास फरो। हे सिद्धात्मन् । आप मोक्षमार्ग हैं, मोक्षकारण है, साक्षात् मोक्षरूप हैं, मोक्षसुख हैं, मोक्षसंपत्स्वरूप हैं। हे निरंजनसिद्ध ! मुझे सन्मति प्रदान कीजिये।" इसी भावना का फल है कि उन्हें ऐसे लोकविजयी पुत्र प्राप्त होते हैं। इति मोक्षमार्ग संविः
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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