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________________ १४४ भरतेश वैभव ___ अणुके निम्न श्रेणी में स्थित परमाणु एक दो तीन आदि संख्यामें मिलकर अणुतक पहुंच जाते हैं। वह भी एक तरहसे स्कंध है, क्योंकि अणु भी कारणस्कंध कहलाता है। अणु, परमाणु, स्कंधके रूपमे कभी पुद्गलके तीन भेद होते हैं तो कभी अणु शुद्धको छोड़कर परमाणु व स्कन्धके नामसे दो ही भेदको परमाणुको स्पर्शन, रसना, गन्ध वर्ण मौजूद है। परन्तु शब्द नहीं है । परमाणु मिलकर जब स्कन्ध बनते हैं। तब शब्द की उत्पत्ति होती है ! वह पर्याय है। पुद्गलके पर्याय में स्थिर पर्याय और अस्थिर पर्याय नामक दो भेद हैं । पृथ्वी, मेरुपर्वत आदि स्थिर पर्याय हैं। बाको पृथक्-पृथक् संचरण करनेवाले अस्थिर पर्याय हैं। अभी तक पुद्गलका वर्णन किया अब आगेके द्रव्यका वर्णन करेंगे। "प्रभो । ठहर जाइये ! मेरी यहाँपर एक शंका है, हे चिद्गुणाभरण ! कूपाकर कहियेगा। आपने फरमाया कि पांच शरीर पुद्गल हैं। परन्तु कर्मके वर्णनमें तीन हो शरीरोंका वर्णन किया। ये दो शरीर और कहाँसे आये ? कृपया कहिये ।" रविकीतिराजने प्रश्न किया । उत्तरमें भगवतने कहा सुनो ! नारकियोंको, देवोंको औदारिक शरीर नहीं है, उनको थेत्रियक शरीर है और वैकियके साथ उनको र तेजस व कार्माण शरीर रहते हैं। इस प्रकार उनको तीन शरीर है। मनुष्य व तियचोंका शरीर प्राप्त आकारमें ही रहता है। उसे बोदारिक कहते हैं। परन्तु देव नारकी इच्छित रूपमें अपने शरीरको परिवर्तन कर सकते हैं, वह वैक्रियक है। __उत्तम संयमको धारण करनेवाले मुनियोंको तस्वमें संशय उत्पन्न होनेपर मस्तकमें एक हस्तप्रमाण शुभ सूक्ष्म शरीरका उदय होकर हमारे समीप आ जाता है । और संशयनिवृत्त होकर जाता है। उसे आहारक' शरीर कहते हैं । तत्त्वविषयका संदेह दूर होते हो स्वतः अन्तर्मुहूर्त के अन्दर नष्ट होता है। फिर वह मुनिराज सदाको भौति रहते हैं । उसे आहारक १. आहरदि अणेण मुणी सुहमे अत्ये सयस्स संदेहो । गता केवलि पासं तम्हा आहरगो लोगो ॥ -नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्ती
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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