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________________ भरतेश वैभव ४५. हो रहे ? इसलिए हमने नमस्कार किया। उन पुत्रोंका विनय सचमुचमें श्लाघनीय है । भरतजीको उनका उत्तर सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। उन सबको यहाँ सतरंजीपर बैठनेके लिए कहा, इतनेमें विमलराज व भानुराजने सम्राटका दर्शन किया। चक्रवर्तीने उनको आलिंगन देकर कहाकि विमलराज ! भानुराज ! आप लोग आये सो बहुत अच्छा हुआ। भानुराज, विमलराजको भी बड़ा हर्ष हुआ । क्यों नहीं ? जब षट्खंडाधिपति अपनेको राजाके नामसे सम्बोधित करते हैं, हर्ष क्यों न होगा । पहिले कभी मिलने का प्रसंग आया तो भरतजी, आओ भानु, आओ विमल, ऐसा कहकर बुलाते थे । अब राजाके नाम से उन्होंने बुलाया है। यह कम वैभवको बात नहीं है । इसलिए उन दोनोंको बड़ा ही हर्ष हआ। हर्षके भरमें ही उन्होंने सम्राट्से कहा कि स्कामिद . हमारे में क्या है परन्तु थाप शनसे हम लोगोंको बहुत आनन्द हुआ । सुगंधित पुष्पको लगकर आनेवाले पवन में जिस प्रकार सुगंधत्व रहता है, उसी प्रकार आपके दर्शनसे हम पवित्र हुए | तब भरतजीने कहा कि आप लोगोंकी आत जितनी मोठी है उतनी वृत्ति मीठी नहीं है । तब उन्होंने उत्तर दिया कि सच है स्वामिन् ! गरीबों की वृत्ति बड़े लोगोंको कभी पसन्द नहीं हो सकती है। "आप लोग गरीब कैसे हैं ?' भरतजीने हंसते हुए कहा। "नहीं, नहीं, आपसे भी बड़े हैं" इस प्रकार विनोदसे उन्होंने उत्तर दिया। जाने दो विनोद ! आप लोग गरीब कैसे हैं ? बड़े बुद्धिमान हैं। कमसे कम हमसे तो अधिक बुद्धिमान हैं, भरतजीने कहा। आप सत्य कहते हैं। आपसे अधिक बुद्धिमान हम नहीं तो और कोन हो सकते हैं ? उन दोनोंने कहा । आप लोग उपायसे बचाना चाहते हैं। परन्तु मेरा भी उल्लंघन करनेवाले आप लोग उइंड हैं, भरतजीने कहा। "कहिये महाराज ! हमने क्या उद्दडता को" दोनों राजाओंने कहा । बोल ? भरतजीने कहा । कहिये, कहिये, हमने ऐसी कौनसी उदंडता की? फिर उन्होंने कहा । सुनो ! हमारे पुत्रोंको हमसे पूछे बिना ही अपने यहाँ लेजाकर अपनी पुत्रियोंको देकर संबंध करनेवाले आप लोग गरीब हैं ? हमसे भी बढ़कर
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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