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________________ ४३० भरतेश वैभव क्या ? मंत्रीको कहकर अर्ककीतिको पट्टाभिषेक कराकर तपश्चर्याके लिए जाऊँ ? छी ! ठीक नहीं । इसे लोक मर्कटवैराग्य कहेगा । समस्त भूमंडलको विजय कर अपने नगरके बाहर उस साम्राज्यपदको फेंककर जाऊँ तो लोग कहेंगे कि भरतेशको देश में भ्रमण कर पित्तोद्रेक हो गया है। मेरे कारणसे मेरे सहोदर दीक्षाके लिए गये और मैं भी दीक्षाके लिए जाऊं तो लोग कहेंगे कि यह बच्चोंका खेल है। जितनी सम्पत्ति बढ़ती है उतना अधिक हम रो सकते हैं, यह निश्चय हुआ। मेरे लिए बड़ा दुःख हुआ। इमे शांत करनेका उपाय क्या है ? इस प्रकार भरतेश्वर विचार करने लगे। पुनः अपने मन में कहते हैं कि संसारम कोई भी दुःख क्यों नहीं आवे, परन्तु परमात्माकी भावना उन सब दुःखोंको दूर कर सकती है । इसलिए आत्मभावना करनी चाहिए । इस विचार से आँख मींचकर आत्मनिरीक्षण करने लगे। मिनीमें गढ़ी हुई छाया प्रतिमाके समान आत्मसाक्षात्कार हो रहा है, शांत वातावरण है ! आठों कर्मोकी मिट्टी बराबर नीचे गलकर पड़ रही है। जिस समय अंतरंगमें प्रकाश हो रहा है उस समय विशिष्ट सुख का अनुभव हो रहा है और उसी समय सुज्ञानकी वृद्धि हो रही है । अभिघातज्वरके समान दुष्कर्म कंपित होकर चारों तरफसे पड़ रही है। गुरु हंसनाय परमात्मा ही उस समय सम्राट्की चित्तपरिणतिको जानें । न मालूम उस चित्तमें व्याप्त दुःख किधर चला गया ? उस समय भरतेश्वर दस हजार वर्षके योगीके समान थे। पुत्र,मित्र, कला, माता, सेना व राज्यको वे एकदम भूल गये । विशेष क्या? वे स्वशरीरको भी भूल गये। उस समय उनके चित्तमें अणुमात्र भी परचिता नहीं है । गुणरत्न भरतेश्वर आत्मामें मग्न थे। न मालूम भरतेश्वरने कितना आत्मसाधन किया होगा ? जब-जब सोचते हैं तभी परमात्मप्रत्यक्ष होता है वह राजा घरमें रहनेपर भी कालकर्म उससे घबराते हैं। क्या ही विचित्रता है, महलमें सब रोना मचा हुआ है । सब लोग शोकसागर में मग्न हैं । परन्तु राजयोगी सम्राट अकंप होकर परमात्मसुखमें मग्न हैं। बार-बार इनको परमात्मदर्शन हो रहा है ! और दुःख धीरे-धीरे कम होता जा रहा है । इस प्रकार तीन दिन तक घ्यानमें बैठे रहे। लोग आकर देखकर जाते हैं कि अभी उठेंगे, फिर उगे बाहरसे लोग आकर पूछ पूछकर जाते हैं । परन्तु भरतेश्वर सुमेरुके समान निश्चल हैं। इस बीच में कुछ लोगोंने उपवास धारण किया, किसीने एकभुक्ति और किसीने फलाहार,
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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