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भरतेश वैभव
बोल रही थी । एक कौआ दाहिने ओरसे बाँयें ओर उड़ गया । बाहुबलिने उसको देखनेपर भी नहीं देखनेके समान कर दिया। परन्तु मित्रोंने उसे खासकर देखा और बाहुबलिका ध्यान उस ओर आकर्षित किया | बाहुबलिने उत्तर दिया कि कौआ नहीं उड़ेगा तो कौन उड़ेगा ? छिपकली वगैरहके मुँहको अपन बंद कैसे कर सकते हैं ? आगे बढ़ने पर एक मनुष्य अपने आभरण व कपड़ोंको उतारते हुए पाया, शायद यह शकुन बाहुबलिके आगे तपोवन के प्रयाणको सूचित कर रहा था । मंत्रीने आकर प्रार्थना की कि स्वामिन् ! आजके प्रस्थानको स्थगित कर कल या परसों करना चाहिए। आज लौट जाइए । परन्तु बाहुबलिने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया। कहा कि चलो ! आज महाउत्तम लग्न है। आओ इस प्रकार अनेक अपशकुनोंको देखते हुए वादक, पाठक व गायकोंके शब्दों को सुनते हुए पोदनपुरके राजद्वारसे बाहर आए ।
गुणवसंतककी सेना तैयार थी । सुन्दर मदोन्मत्त हाथी, घोड़े व शृंगार किये हुए रथ आदिसे उस समय चतुरंगसेना अत्यन्त शोभाको प्राप्त हो रही थी । उसे बाहुबलिने देखा । बाहिरसे चतुरंगसेना व अंदरसे कामदेवकी नारीसेना, इस प्रकार उभयसेनासे युक्त होकर बाहुबलिने वहाँसे प्रस्थान किया। चलते समय गुणवसंतकको प्रसन्न होकर इनाम दिया | बाहुबलि सेनाकी शोभाको देखते हुए जा रहे हैं । कलकंठ आदि अनेक प्रकारसे उनकी जयजयकार कर रहे थे।
बाहुबलिका एक पुत्र महाबलकुमार १० वर्षका है । वह उसके पीछेसे ही सहकार नामक हाथीपर चढ़कर आ रहा है। उसके पीछे ही उसका छोटे भाई रत्नबलकुमार चूतांक नामक हाथीपर चढ़कर आ रहा है। उस समय कामदेवकी शोभा देखने लायक थी। एक तरफ स्त्रियों का समूह, एक तरफ सुन्दर बालक, एक तरफ चतुरंगसेना । इन सब बातों को देखते हुए सचमुच में मालूम हो रहा था कि तीन लोकसे कोई भी शक्ति उससे सामना करनेवाली नहीं है । इस प्रकार बहुत वैभव के साथ बाहुबलि भरतसेनास्थानके पास पहुँचे । सेना बाहुबलिके सौन्दर्यको बहुत ही चावसे देख रही थी । क्योंकि वह कामदेव ही तो हैं ।
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भरतेश्वर अनेक मित्रोंके साथ बाहरके चल रहा है, बत्तीस चामर हुल रहे हैं। समाचार दिया कि बाहुबलि युद्धसंनद्ध होकर आये हैं ।
दरबार में बैठे हैं। गायन इतनेमें किसी दूतने आकर